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नज़्म
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ
जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ
हबीब जालिब
नज़्म
परछाइयाँ
अफ़्लास-ज़दा दहक़ानों के हल बैल बिके खलियान बिके
जीने की तमन्ना के हाथों जीने के सब सामान बिके
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (1)
किसी ग़म-ज़दा देवता की तरह वाहिमा के
गिल-ओ-ला से ख़्वाबों के सय्याल कूज़े बनाता रहा था