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ग़ज़ल
ये चारा-गर हैं कि इक इजतिमा-ए-बद-ज़ौक़ाँ
वो मुझ को देखें तिरी ज़ात से जुदा कर के
अहमद नदीम क़ासमी
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उपन्यासिका
सआदत हसन मंटो
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
दरबार1911
देख आए हम भी दो दिन रह के देहली की बहार
हुक्म-ए-हाकिम से हुआ था इजतिमा-ए-इंतिशार
अकबर इलाहाबादी
ड्रामा
ج: ٹاؤن ہال میں ایک شاندار اجتماع۔ د: رائے بہادر لالہ کشور چند کی مساعی جمیلہ۔...