aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1993 | बलरामपुर, भारत
मुसलसल सोचते रहते हैं तुम को
तुम्हें जीने की आदत हो गई है
अब अपना इंतिज़ार रहेगा तमाम-उम्र
इक शख़्स था जो मुझ से जुदा कर गया मुझे
सो अपने शहर के रौनक़ की ख़ैर माँगना तुम
मैं अपने गाँव से इक शाम ले के आ रहा हूँ
क्या कहूँ कैफ़िय्यत-ए-दिल किस क़दर टूटा हूँ मैं
अब अगर चाहा गया तो रेत में मिल जाऊँगा
एक दिन उस को मुँह लगाया और
और सिगरेट छोड़ दी मैं ने
ऐ अश्क न कर ज़ुल्म ज़रा देर ठहर जा इक शख़्स अभी मेरी निगाहों में बसा है
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