1930 - 2016 | बलरामपुर, भारत
प्रमुख लोकप्रिय शायर जिन्हें ‘उत्साही’ का उपनाम जवाहर लाल नेहरू ने दिया था/उर्दू शायरी को हिंदी के क़रीब लाने के लिए विख्यात
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है
वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया
उलझ रहे हैं बहुत लोग मेरी शोहरत से
किसी को यूँ तो कोई मुझ से इख़्तिलाफ़ न था
तुम बिन चाँद न देख सका टूट गई उम्मीद
बिन दर्पन बिन नैन के कैसे मनाएँ ईद
पैसे की बौछार में लोग रहे हमदर्द
बीत गई बरसात जब मौसम हो गया सर्द
ट्रेन चली तो चल पड़े खेतों के सब झाड़
भाग रहे हैं साथ ही जंगल और पहाड़
Apni Dharti Chand Kar Darpan
1975
Ghazal Saanwri
1984
Ghazal Sanwari
मिट्टी, रेत, चट्टान
1992
मोती उगे धान के खेत
2002
Purvaiyan
Purwaiyan
Rang Hazaron Khushboo Ek
1989
Rukhsati
1972
यूँ तो कई किताबें पढ़ीं ज़ेहन में मगर महफ़ूज़ एक सादा वरक़ देर तक रहा
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
The best way to learn Urdu online
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
A three-day celebration of Urdu