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नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
इस शहर में जो बात हो उड़ जाती है सब में
मैं ने भी सुनी अपने अहिब्बा की ज़बानी
अल्लामा इक़बाल
नअत
بس خامہ خام نوائے رضا نہ یہ طرز میری نہ یہ رنگ مرا
ارشاد احبا ناطق تھا ناچار اس راہ پڑا جانا
इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी
नज़्म
आख़िरी लम्हा
दिल की हालत हुई जाती है अजीब आ जाओ
न अइज़्ज़ा न अहिब्बा न ख़ुदा है न रसूल
जाँ निसार अख़्तर
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विषय
अहबाब
अहबाब शायरी
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ग़ज़ल
हलावत ज़िंदगी की है मुलाक़ात-ए-अहिब्बा में
मज़ा मुर्दे को तन्हाई का है ज़िंदे को सोहबत का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
'अज़ीज़' अफ़्कार-ए-दुनिया और मशाग़िल शेर-गोई के
अहिब्बा की मोहब्बत है जो इस क़ाबिल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
फेरी हैं अहिब्बा ने आँखें बदले हैं अइज़्ज़ा ने तेवर
है 'शौक़' हर आराज़ी बंजर मालूम नहीं क्या होना है
शौक़ बहराइची
नज़्म
तेरे ब'अद
दोस्त रखती थी हमेशा तिरे हर दोस्त को मैं
हो गए अपने अहिब्बा से सिवा तेरे बाद
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
ग़ज़ल
था ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दुश्मन-ए-खूँ-ख़्वार के दिल में
बेड़ा मिरी ईज़ा का अहिब्बा ने उठाया