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नज़्म
शिकवा
शर्त इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीम
बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
बेदर्द! ज़रा इंसाफ़ तो कर इस उम्र में और मग़्मूम है वो
अख़्तर शीरानी
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विषय
न्याय
न्याय
विशेष
बाल-साहित्य
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शेर
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मर्सिया
है शोर फ़लक का कि ये ख़ुरशीद-ए-अरब है
इंसाफ़ ये कहता है कि चुप तर्क-ए-अदब है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
नज़्म
जश्न-ए-ग़ालिब
'गाँधी' हो कि 'ग़ालिब' हो इंसाफ़ की नज़रों में
हम दोनों के क़ातिल हैं दोनों के पुजारी हैं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
गुनहगारों में शामिल मुद्द'ई भी और मुल्ज़िम भी
तिरा इंसाफ़ देखा और 'अदालत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
शेर
दिल साफ़ हो किस तरह कि इंसाफ़ नहीं है
इंसाफ़ हो किस तरह कि दिल साफ़ नहीं है