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ग़ज़ल
ये ख़याल सारे हैं आरज़ी ये गुलाब सारे हैं काग़ज़ी
गुल-ए-आरज़ू की जो बास थे वही लोग मुझ से बिछड़ गए
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे