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ग़ज़ल
फ़रहान सालिम
ग़ज़ल
कल तो ब-हद्द-ए-शिकवा थीं इश्क़ की बद-गुमानियाँ
अब न नदामतें हैं क्यूँ शिकवा-सरा को क्या हुआ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ब-हद्द-ए-वुसअत-ए-ज़ंजीर गर्दिश करता रहता हूँ
कोई वहशी गिरफ़्तार-ए-सफ़र ऐसा नहीं होगा
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दयार-ए-हुस्न में पाबंदी-ए-रस्म-ए-वफ़ा कम है
बहुत कम है बहुत कम है ब-हद्द-ए-इंतिहा कम है
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
आग दे दे कर ब-हद्द-ए-आशियाँ ये इंतिक़ाम
तिनका तिनका क्यों किसी को इस क़दर महबूब था
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
सब जनावर आ ख़ुशी में तू अगर चाहे शिकार
ता ब-हद कावी ज़मीं तक ही करे जानाना रक़्स