aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بلب"
बुलबुल काश्मीरी
born.1922
शायर
सैयद फ़ख़्रुद्दीन बल्ले
1930 - 2004
जितेंद्र बल्लू
born.1937
लेखक
राय सिध नाथ बली फ़िराक़ी
ज़फ़र मोईन बल्ले
संपादक
अराबिया बकले
1840 - 1929
Shamsuddin Bulbul
बाब-उल-हवाइज बुक-डिपो, कराची
पर्काशक
मुंशी बलाक़ी दास
बील्ली गराहम
मुंशी बृज बल्लभ किशोर सादिक़
जनरल न्यूज़ पेपर व बुक एजेंसी, बल्लीमारान, दिल्ली
गुरसरन बलि आज़ाद तवक्कली
वहीद बुलबुल
बाब-उल-इल्म सोसाइटी, हैदराबाद
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न देमैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
जी में क्या क्या है अपने ऐ हमदमपर सुख़न ता-ब-लब नहीं आता
मैं शिकवा ब-लब था मुझे ये भी न रहा यादशायद कि मिरे भूलने वाले ने किया याद
काम चल निकला, चुनांचे उसने थोड़ी ही देर के बाद अपना अड्डा अंबाले छावनी में क़ायम कर दिया। यहां वो गोरों के फ़ोटो खींचता रहता। एक महीने के अंदर अंदर उसकी छावनी के मुतअद्दिद गोरों से वाक़फ़ियत होगई, चुनांचे वो सुल्ताना को वहीं ले गया। यहां छावनी में ख़ुदाबख़्श के...
सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सापर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
हुस्न अदाओं से ही हुस्न बनता है और यही अदाएं आशिक़ के लिए जान-लेवा होती है। महबूब के देखने मुस्कुराने, चलने, बात करने और ख़ामोश रहने की अदाओं का बयान शायरी का एक अहम हिस्सा है। हाज़िर है अदा शायरी की एक हसीन झलक।
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
मिर्ज़ा ग़ालिब निस्संदेह उर्दू के ऐसे महान शायर हैं जिन्हें विश्व साहित्य के प्रतिष्ठित कवियों की सूची में गर्व के साथ शामिल किया जा सकता है। ग़ालिब की शायरी की एक विशेषता यह भी है कि उनके कलाम में बड़ी तादाद में ऐसे अशआर मौजूद हैं जिन्हें अलग अलग परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। हमने प्रयास किया है कि ग़ालिब के अत्यंत लोकप्रिय अशआर आपके लिए एक साथ पेश किये जाएं। ग़ालिब के समग्र कलाम से केवल २० अशआर का चयन करना कितना कठिन है इसका अन्दाज़ा आपको अवश्य होगा। हम स्वीकार करते हैं कि ग़ालिब के कई बेहतरीन अशआर हमारी सूची में शामिल होने से रह गए हैं। हमें आप ऐसे अशआर बिना किसी संकोच के भेज सकते हैं. हमारा संपादक मंडल आपके द्वारा चिन्हित ऐसे अशआर को टॉप २० सूची में शामिल करने पर विचार कर सकता है। आशा है कि आप इस चयन से लाभान्वित होंगे बेहतर बनाने के लिए हमें अपने क़ीमती सुझावों से अवगत कराते रहेंगे।
ब-लबبلب
on lips
बल्बبلب
bulb
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Sau Candle Power Ka Bulb
सआदत हसन मंटो
अफ़साना
Billu Ka Basta
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
Khubsoorat Bala
आग़ा हश्र काश्मीरी
नाटक / ड्रामा
Bulbul-e-Khush Nawa
कहानी
Tazkira-e-Auliya-e-Haidarabad
सय्यद मुराद अली ताले
Bab-e-Haram
मुज़फ़्फ़र वारसी
नात
असलम की बिल्ली
इस्माइल मेरठी
Barq-e-Bala Khez
मेरी कोलियर
नॉवेल / उपन्यास
Tazkira-e-Ahl-e-Dehli
सर सय्यद अहमद ख़ान
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Bulbul-e-Hind
वज़ीर हसन
जीवनी
Chuhe Ke Khutoot Billi Ke Naam
सईद सोहरवर्दी
हास्य-व्यंग
Taras Bulba
नकोलाई गोगोल
महा-काव्य
“सो जाओ बेटा कैसा चोर” रब्बो की आवाज़ आई। मैं जल्दी से लिहाफ़ में मुँह डाल कर सो गई। सुब्ह मेरे ज़ेह्न में रात के ख़ौफ़नाक नज़ारे का ख़याल भी न रहा। मैं हमेशा की वहमी हूँ। रात को डरना। उठ उठ कर भागना और बड़बड़ाना तो बचपन में रोज़...
بل کھا کے رخ پہ زلف کسی کی اکڑ گئیچتون کسی کی شورِ دہل سے بگڑ گئی
گویا دہن کتابِ بلاغت کا ایک بابسوکھی زبانیں شہد فصاحت سے کامیاب
ज़ात-कदे में पहरों बातें और मिलीं तो मोहर ब-लबजब्र-ए-वक़्त ने बख़्शी हम को अब के कैसी मजबूरी
ताराबाई की आँखें तारों की ऐसी रौशन हैं और वो गर्द-ओ-पेश की हर चीज़ को हैरत से तकती है। दर असल ताराबाई के चेहरे पर आँखें ही आँखें हैं । वो क़हत की सूखी मारी लड़की है। जिसे बेगम अल्मास ख़ुरशीद आलम के हाँ काम करते हुए सिर्फ़ चंद माह...
"आपा?" बद्दू लापरवाही से दोहराता।, "बैठी है बुलाऊं?" भाई साहब घबरा कर कहते, "नहीं नहीं। अच्छा बद्दू, आज तुम्हें, ये देखो इस तरफ़ तुम्हें दिखाएं।" और जब बद्दू का ध्यान इधर उधर हो जाता तो वो मद्धम आवाज़ में कहते, "अरे यार तुम तो मुफ़्त का ढिंडोरा हो।"...
पूना ही न आरहे हों, क्योंकि जानकी को रुख़सत करते वक़्त उन्होंने कहा था एक रोज़ में चुपचाप तुम्हारे पास चला आऊँगा। बातें करने के बाद उसका तरद्दुद कम हुआ तो उसने अ’ज़ीज़ की तारीफ़ें शुरू करदीं। घर में बच्चों का बहुत ख़याल रखते हैं। हर रोज़ सुबह उनको वरज़िश...
خانہ آگہی خراب، دل نہ سمجھ بلا سمجھ خدایا چشم تا دل درد ہے افسون آگاہی...
मांडू मीरासी ने अफ़ीम के नशे में अपना सर हिलाया और ग़नूदगी भरी आवाज़ में कहा, “छोटी बाई। अल्लाह सलामत रखे तुम्हें, क्या बात कही है। मैं तो अभी चलने के लिए तैयार हूँ, मेरी क़ब्र भी बनाओ तो रूह ख़ुश रहेगी।” दूसरे मीरासी थे वो भी तैयार होगए लेकिन...
वो औरत एक दम यूँ उठी जैसे आग दिखाई हुई छछूंदर उठती है और चिल्लाई, “अच्छा उठती हूँ।” वो एक तरफ़ हट गया। असल में वो डर गया था। दबे पांव वो तेज़ी से नीचे उतर गया। “उसने सोचा कि भाग जाये... इस शहर ही से भाग जाये। इस दुनिया...
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