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नज़्म
परछाइयाँ
इंसान की क़िस्मत गिरने लगी अजनास के भाव चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक़ घुटने लगी भरती के दफ़ातिर बढ़ने लगे
साहिर लुधियानवी
कहानी
दूसरे ने कहा, “नहीं यार... कोतवाली को आग लगाऐं!”
तीसरे ने कहा, “और सारे बैंकों को भी!”
सआदत हसन मंटो
तंज़-ओ-मज़ाह
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उसको सुनाए न बने
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने
सआदत हसन मंटो
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नज़्म
मुफ़्लिसी
और उस को उँगलियों पे नचाती है मुफ़्लिसी
उस का तो दिल ठिकाने नहीं भाव क्या बताए