aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تائب"
हफ़ीज़ ताईब
1931 - 2004
शायर
ख़ालिद इक़बाल ताइब
आलमताब तिश्ना
1935 - 1991
मोहम्मद हुसैन ताईब देहलवी
ताब असलम
खुन्नू लाल ताइब लखनवी
लेखक
मतबा मौलवी फ़तेह मोहम्मद ताइब, लखनऊ
पर्काशक
फ़तेह मो. ताएब
हस्साम तअज्जुब
born.2003
इबन-ए-अहमद ताब
1931 - 1973
मतबा आफ़ताब-ए-आलम-ताब, लखनऊ
मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइबख़ुदा करे कि मिले शैख़ को भी ये तौफ़ीक़
मसाइब देहलवी माफ़ कीजिए मिर्ज़ा, नज़्म से तो मैं ताइब हो चुका हूँ। ग़ालिब हाएं, नज़्म से तौबा कर ली, आख़िर क्यों?...
कहने लगी, ‘‘कुछ ऐसा ग़लत भी न था।’’ मैंने कह, ‘‘प्लाट के मुताल्लिक़ मैंने ये ख़्याल ज़ाहिर किया था कि ज़रा ढीला है। ये भी ठीक था?’’...
یہ بات روز بروز روشن ہوتی جاتی ہے کہ گورنمنٹ کا فرض بہ نسبت مثبت اور معمل ہونے کے زیادہ تر منفی اور مانع ہے اور وہ فرض جان اور مال اور آزادی کی حفاظت ہے۔ جب کہ قانون کا عمل در آمد دانشمندی سے ہوتا ہے تو آدمی اپنی...
शहरों को मौज़ू बना कर शायरों ने बहुत से शेर कहे हैं, तवील नज़्में भी लिखी हैं और शेर भी। इस शायरी की ख़ास बात ये है कि इस में शहरों की आम चलती फिरती ज़िंदगी और ज़ाहिरी चहल पहल से परे कहीं अन्दुरून में छुपी हुई कहानियाँ क़ैद हो गई हैं जो आम तौर पर नज़र नहीं आतीं और शहर बिलकुल एक नई आब-ओ-ताब के साथ नज़र आने लगते हैं। आगरा पर ये शेरी इन्तिख़ाब आप को यक़ीनन उस आगरा से मुतआरिफ़ करायेगा जो वक़्त की गर्द में कहीं खो गया है।
ताइबتائب
repenting, penitent
Kulliyat-e-Hafeez Taib
नात
Sallu Alaihi Wa Aalihi
S.W.A Majmua-e-Nat
Tamanna Betab
रशीद अमजद
आत्मकथा
Taab-e-Ghazal
ताबिश देहलवी
काव्य संग्रह
Saeed
क़ारी सरफ़राज़ हुसैन
नॉवेल / उपन्यास
Khulasat-ut-Tafaseer
Aaine Ke Us Taraf
Zambeel-e-Sahr Taab
क़ैसर सिद्दीक़ी
मौज मौज तिशनगी
Aaftab-e-Aalam-Tab
अशफ़ाक़ अंजुम
जीवनी
Khama-e-Dil
ज़र ताब
रज़िया बट्ट
नीतिपरक
Tab-o-Taab
सग़ीर रियाज़
Zaruriyat-e-Deen
کم و بیش چالیس سال گزرے جب اقبال کی شاعرانہ زندگی کا آغاز ہوا۔ اس وقت اردو شاعری اگرچہ لوگوں میں مقبول تھی اور ہر کس و نا کس اس سے لطف اندوز ہوتا تھا۔ اس کا مقصد خود زندگی نہیں بلکہ محض زندگی کے حاشیہ کی تزئین سمجھا جاتا...
वालिद साहब को सोलह आने यक़ीन हो गया कि बरखु़र्दार ज़ाती तौर पर वैसे ही बुज़दिल वाक़ा हुए हैं जैसा वो चाहते हैं और हस्ब-ए-मामूल अलीगढ़ जाने का प्रोग्राम बनता रहा। जहाँ तक हाकी से ताइब होने का क़िस्सा है वो भी झूट न था। एक तो रिआयती हैसियत से...
“आपको ये मिल कैसे गए?“ भटनागर ने पूछा। “ये भी हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ था।”, मौलाना बोले। “मैं घंटाघर से गुज़र रहा था कि मेरी नज़र एक बज़्ज़ाज़ की दुकान पर पड़ी। देखा कि ज़र-बफ़्त के थानों के ढेर सामने लगे हैं। और हज़रत हैं कि सबको ना-पसंद करते चले जाते हैं। मुझे...
पूछते हैं ये शाएरी क्या हैहाए ऐसी भी सादगी क्या है
मिर्ज़ा करते वही हैं जो उनका दिल चाहे लेकिन इसकी तावील अजीब-ओ-ग़रीब करते हैं। सही बात को ग़लत दलायल से साबित करने का ये नाक़ाबिल रश्क मलिका शाज़-ओ-नादिर ही मर्दों के हिस्से में आता है। अब सिगरेट ही को लीजिए। हमें किसी के सिगरेट न पीने पर कोई एतराज़ नहीं,...
میں آداب کر کے تخت کے ایک کونے پر دو زانو بیٹھ گیا۔ مفتی صاحب نے آنے کا سبب پوچھا۔ میں نے حکیم مومن خاں کا پیغام پہنچا دیا۔ مفتی صاحب نےبڑے تعجب سے پوچھا، ہیں؟ خاں صاحب نے تو مشاعرے میں نہ جانے کا عہد کر لیا ہے۔ بھئی...
ادائے خاص کے ساتھ رکوع میں چلے گئے اور گھٹنے پکڑے پکڑے ہماری صورت دیکھ کر دیر تک ہنستے رہے۔ پھر ارشاد ہوا، ’’چتکبرا ہوتا ہے۔ اس لیے ابلقہ بھی کہتے ہیں۔ مٹھی میں دبا لیں تو پتہ بھی نہ چلے کہ خالی ہے یا بھری۔ آپ اسے تنہا کبھی...
اس بات کا اعادہ کرنے کی ضرورت نہیں کہ وابستہ ادب کے ماننے والوں، وجودیت پرستوں اور بے معنویت کے آئینہ داروں میں تمثیلیت پرستی کی قدر مشترک ہے، لیکن یہ بات اطالوی ادب پور پری طرح صادق نہیں آتی۔ اطالوی ادب جو نشاۃ ثانیہ کے دور اولیں میں جاگ...
ताइब थे एहतिसाब से जब सारे बादा-कशमुझ को ये इफ़्तिख़ार कि मैं मय-कदे में था
इस वाक़िआ को आठ रोज़ भी नहीं गुज़रने पाए थे कि एक दिन सुबह ही सुबह एक ताँगा उनके मकान के सामने आकर रुका। उसमें एक औरत बैठी थी जिसने स्याह बुर्क़ा ओढ़ रखा था। ताँगे में दो एक ट्रंक और कुछ छोटी-छोटी बुक़चियाँ भी थीं। हाजी साहब उस औरत...
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