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नज़्म
मता-ए-ग़ैर
ढूँडती रहती हैं तख़्ईल की बाँहें तुझ को
सर्द रातों की सुलगती हुई तन्हाई में
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिरास
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किस से मोहब्बत है
मिरे तख़्ईल के बाज़ू भी उस को छू नहीं सकते
मुझे हैरान कर देती हैं नुक्ता-दानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
ख़ुश-नुमा या बद-नुमा हो दहर की हर चीज़ में
'जोश' की तख़्ईल कहती है कि नुदरत देखिए
जोश मलीहाबादी
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नज़्म
अन-कही
मेरी तख़्ईल को क्या रंग अता करते हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे आरिज़ तिरे होंट
हिमायत अली शाएर
नज़्म
दिल हसीं है तो मोहब्बत भी हसीं पैदा कर
आसमाँ मरकज़-ए-तख़्ईल-ओ-तसव्वुर कब तक
आसमाँ जिस से ख़जिल हो वो ज़मीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
अलविदा
हमारे ज़ेहन की तख़्ईल की एहसास की साथी
हमारे ज़ौक़ की रहबर हमारी अक़्ल की हादी
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
नया हुस्न
कब से तख़्ईल में लर्ज़ां था ये नाज़ुक पैकर
कब से ख़्वाबों में मचलती थी जवानी तेरी