aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تفصیلات"
लेकिन तहसीलदार साहब और हेड-मास्टर साहब की नेक नियती यहीं तक महदूद न रही। अगर वह सिर्फ़ एक आ’म और मुहमल सा मश्विरा दे देते कि लड़के को लाहौर भेज दिया जाये तो बहुत ख़ूब था, लेकिन उन्होंने तो तफ़सीलात में दख़ल देना शुरु कर दिया और हॉस्टल की ज़िंदगी और घर की ज़िंदगी का मुक़ाबला कर के हमारे वालिद पर ये साबित कर दिया कि घर पाकीज़गी और तहारत का एक का’बा और ...
बाद के औक़ात से मा’लूम होता है कि भतीजे साहब मेरे हर ख़त को बेहद अदब-व-एहतिराम के साथ खोलते, बल्कि बा’ज़-बा’ज़ बातों से तो ज़ाहिर होता है कि उस इफ़्तेताही तक़रीब से पेशतर वो बाक़ायदा वज़ू भी कर लेते। ख़त को ख़ुद पढ़ते फिर दोस्तों को सुनाते, फिर अख़बारों के एजेन्ट की दुकान पर मक़ामी लाल बुझक्कड़ों के हल्क़े में उसको ख़ूब बढ़ा चढ़ा कर दोहराते फिर मक़ामी अख़बार के...
हम वफ़ादार नहीं तू भी तो दिलदार नहीं!लिहाज़ा हम तफ़सीलात से एह्तिराज़ करेंगे। हालाँकि दिल ज़रूर चाहता है कि ज़रा तफ़सील के साथ मिनजुम्ला दीगर मुश्किलात के इस सरासीमगी को बयान करें जो उस वक़्त महसूस होती है जब हमसे अज़ रूए हिसाब ये दरयाफ़्त करने को कहा जाये कि अगर नौकर की 13 दिन की तनख़्वाह 30 रुपये और खाना है, तो 9 घंटे की तनख़्वाह बग़ैर खाने के क्या होगी?
“जी हाँ, बल्कि इससे भी कुछ ज़्यादा, उसको इस बात का ग़म था कि अगर वो कोई मंज़र, कोई मर्द, कोई औरत सिर्फ़ एक नज़र देख ले तो उसे मिन-ओ-अ’न अपने अलफ़ाज़ में बयान कर सकता है जो कभी ग़लत नहीं होंगे और इसमें कोई शक नहीं कि उसका अंदाज़ा हमेशा दुरुस्त साबित होता था।”मैंने पूछा, “क्या ये वाक़ई दुरुस्त था।”
मेरे लिए जो तीन अदद सेब लाए थे वो खा चुकने के बाद जब उन्हें कुछ क़रार आया तो वो मशहूर ताज़ियती शे’र पढ़ा जिसमें उन ग़ुंचों पर हसरत का इज़हार किया गया है जो बन खिले मुरझा गए।मैं फ़ित्रतन रक़ीक़-उल-क़ल्ब वाक़े हुआ हूँ और तबीयत में ऐसी बातों की सहार बिल्कुल नहीं है। उनके जाने के बाद जब लाद चले बंजारा वाला मूड तारी हो जाता है और हालत ये होती है कि हर परछाईं भूत और हर सफ़द चीज़ फ़रिश्ता दिखाई देती है। ज़रा आँख लगती है तो बेरब्त ख़्वाब देखने लगता हूँ।
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क्या शायरी की पहचान मुम्किन है? अगर हाँ, तो क्या अच्छी और बुरी शायरी को अलग अलग पहचानना मुम्किन है? अगर हाँ, तो पहचानने के ये तरीक़े मारुज़ी हैं या मोज़ूई? यानी क्या ये मुम्किन है कि कुछ ऐसे मेयार, ऐसी निशानियां, ऐसे ख़वास मुक़र्रर किए जाएं या दरयाफ़्त किए जाएं जिनके बारे में ये कहा जा सके कि अगर ये किसी तहरीर में मौजूद हैं तो वो अच्छी शायरी है, या अच...
चारपाई एक ऐसी ख़ुदकफ़ील तहज़ीब की आख़िरी निशानी है जो नए तक़ाज़ों और जरूरतों से ओहदा बर आ होने के लिए नित नई चीज़ें ईजाद करने की क़ाइल न थी। बल्कि ऐसे नाज़ुक मवाक़े पर पुरानी में नई खूबियां दरयाफ़्त कर के मुस्कुरा देती थी। उस अहद की रंगारंग मजलिसी ज़िंदगी का तसव्वुर चारपाई के बग़ैर मुम्किन नहीं। उसका ख़्याल आते ही ज़ेहन के उफ़ुक़ पर बहुत से सुहाने मंज़र उभर ...
मेरी तफ़सीलात में जाने का मौक़ा' अब कहाँअब तो आसाँ है समझना मुख़्तसर बाक़ी हूँ मैं
“बहुत ज़रूरी थे... इसलिए कि ख़ाविंद के फेफड़ों के मुक़ाबले में दुल्हन के जहेज़ की तफ़सीलात बहुत अहम थीं, उसके बालों की अफ़्शां, उसके गालों पर लगाया गया ग़ाज़ा, उसके होंटों की सुर्ख़ी, उसकी ज़रबफ्त की क़मीस और जाने क्या क्या... ये तमाम इत्तिलाएं पहुंचाना वाक़ई अशद ज़रूरी था वर्ना दुनिया के तमाम कारोबार रुक जाते। चांद और सूरज की गर्दिश बंद हो जाती। दुल्हन के घूंघ...
अंदर जाकर उसने एक एयरकंडीशंड क़ब्र में झाँका। ये एक Split Level क़ब्र थी। अंदर रंगीन टेलीविज़न के सामने ज़िंदा लोग बैठे शराब पी रहे थे। टेलीविज़न पर सैंटर्ल यूरोपियन नीली चेहरे वाली औ’रत “लिली मारलीन” गा रही थी। उसने 1916 के फ़ैशन का लिबास पहन रखा था। गड़गड़ाहट के साथ ख़बरें शुरू’ हो गईं। वो ख़बरें सुनना न चाहती थी इसलिए भागी। रास्ते में उसने देखा कि जन...
धौल-धप्पा उस सरापा-नाज़ का शेवा नहींकौन कहता है कि मिर्ज़ा साहिब ना-आक़िबत-अँदेश थे। देखिए किस तरह अपने छोटे भाई असद को मश्वरा लेने के बहाने नसीहत करते हैं...
(लिहाफ़) “टिक-टिक, टिक-टिक। घड़ी की तरह उसका दिल हिलने लगा।”
ये कह कर वो कुछ देर के लिए चुप हो गई लेकिन फिर करवट बदल कर कहने लगी, “मेरे ख़यालात पहले ऐसे नहीं थे। सच पूछिए तो मुझे सोचने का वक़ूफ़ ही नहीं था, लेकिन इस क़हत ने मुझे एक बिल्कुल नई दुनिया में फेंक दिया।” रुक कर एक दम वो मेरी तरफ़ मुतवज्जा हुई। मैं अपनी कापी में याददाशत के तौर पर उसकी चंद बातें नोट कर रहा था।“ये आप क्या लिख रहे हैं?”
مزید تفصیلات کی ضرورت نہیں معلوم ہوتی۔ ’بال جبریل‘ کی صرف ایک نظم اور یہاں درج کی جاتی ہے۔ جس جوش و خروش، جس جذبہ صادق، جس خلوص کی یہ آئینہ دار ہے، اس کا اندازہ اہل نظر ہی کر سکتے ہیں۔ فرمان خدا فرشتوں کے نام
"हाँ अच्छी है लेकिन कुछ ऐसी अच्छी भी नहीं। मुसन्निफ़ से दौर-ए-जदीद का नुक़्ता-ए-नज़र कुछ निभ न सका, लेकिन फिर भी बा'ज़ नुक्ते निराले हैं। बुरी नहीं बुरी नहीं।"कनखियों से मेबल की तरफ़ देखता गया लेकिन उसे मेरी रियाकारी बिल्कुल मा'लूम न होने पाई। ड्रामे के मुता'ल्लिक़ कहा करता था:
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