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ग़ज़ल
ये भोग भी एक तपस्या है तुम त्याग के मारे क्या जानो
अपमान रचियता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे
साहिर लुधियानवी
तंज़-ओ-मज़ाह
सवाल, “दुनिया से त्याग किस वक़्त इख़्तियार करना चाहिए?” जवाब, “जब दुनिया आपको त्याग दे।”...
फ़िक्र तौंसवी
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ग़ज़ल
जिस के कारन त्याग तपस्या और तप को वन-वास मिला
सोच रहा हूँ इक रानी को क्यूँ ऐसा वर याद रहा