aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "جنوب"
नूर-ए-जूनूब, चेन्नई
पर्काशक
जनाब राज़ी
लेखक
जनाब सत्ताब मुअल्ला
जनाब अब्बास अली साहेब
जूनोबी एशिया परफॉर्मिंग आर्ट्स, अमेरिका
मुंशी चंद्रिका प्रसाद जनून
बम्बई जोब बर्क़ी प्रेस, दिल्ली
जनाब बाक़ी
जनाब मुल्ला
मौलवी मोहम्मद उमर जुनून
फ़ारूक़ जुनूँ
उफ़ ये फ़ज़ा-ए-एहतियात ता कहीं उड़ न जाएँ हमबाद-ए-जुनूब भी नहीं बाद-ए-शिमाल भी नहीं
शौक़ की एक उम्र में कैसे बदल सकेगा दिलनब्ज़-ए-जुनून ही तो थी शहर में डूबती गई
دیکھا سوئے فلک شہ گردوں رکاب نےمڑ کر صدا رفیقوں کو دی اس جناب نے
उसी ज़माने में मुझे मा'लूम हुआ कि उस लड़की की माँ-ख़ाला वग़ैरह ने मुझे पसंद कर लिया है (स्कूल डे के जलसे के रोज़ देखकर) और अब वो मुझे बहू बनाने पर तुली बैठी हैं। ये लोग नूर-जहाँ रोड पर रहते थे और लड़का हाल ही में रिज़र्व बैंक आफ़...
(कहते हुए सँभल कर बैठ जाते हैं मगर चेहरे से बराबर नागवारी के असरात नुमायां हैं) मुनकिर: (अरबी में) मिन रब्बिक...
शायरी में गिरेबान तभी गरेबान है जब वो चाक हो। गरेबान का चाक होना, पैरों में आबले आ जाना, दामन का तारतार हो जाना ही आशिक़ के जुनून ओ दीवानगी का कमाल है। हम सही सलामत गरेबान वालों को चाक-गरेबानी का ये क़िस्सा भी पढ़ना चाहिए और जुनून की तस्वीर देखनी चाहिए।
शायरी में इश्क़ की कहानी पढ़ते हुए आप बार बार सहरा से गुज़रे होंगे। ये सहरा ही आशिक़ की वहशतों और उस की जुनूँ-कारी का महल-ए-वक़ू है। यही वह जगह है जहाँ इश्क़ का पौदा बर्ग-ओ-बार लाता है। सहरा पर ख़ूबसूरत शायरी का ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
वहशत पर ये शायरी आप के लिए आशिक़ की शख़्सियत के एक दिल-चस्प पहलू का हैरान-कुन बयान साबित होगी। आप देखेंगे कि आशिक़ जुनून और दीवानगी की आख़िरी हद पर पहुँच कर किया करता है। और किस तरह वो वहशत करने के लिए सहराओं में निकल पड़ता है।
जुनूबجنوب
south
जुनूब मग़रिबी एशिया में हमारा तहज़ीबी वर्सा
तनवीर अहमद अल्वी
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Lauh-e-Junoon
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Junubi Hind Ki Urdu Sahafat
मोहम्मद अफ़ज़लुद्दीन इक़बाल
पत्रकारिता
तारीख़-ए-जुनूबी हिन्द
इतिहास
کیا ہے قصور جس پہ یہ غصہ ہے یہ عتابکرتا ہوں بات میں کوئی بے مرضیِٔ جناب
न आशिक़ी जुनून कीकि ज़िंदगी अज़ाब हो
मशरिक़ से मेरा रास्ता मग़रिब की सम्त थाउस का सफ़र जुनूब की जानिब शुमाल से
ग़ालिब की ज़िंदगी अपने आग़ाज़-ओ-अंजाम और दरमियानी वाक़िआत की तर्तीब-ओ-इर्तिक़ा के लिहाज़ से एक ड्रामाई कैफ़ियत रखती है। दुनियाए शे’र में तो मिर्ज़ा ग़ालिब ख़ल्लाक़-ए-मआनी और फ़नकार थे ही, लेकिन उनकी शख़्सी ज़िंदगी के मुरक़्क़ा को भी रंग और रोशनी और साये की आमेज़िश ने एक मुस्तक़िल फ़न्नी कारनामा बना...
डाक्टर (मिस) पदमा मैरी अबराहाम क्रेन। उ’म्र 29 साल, ता’लीम: ऐम.ऐस.सी. (मद्रास) पी.ऐच.डी. (कोलंबिया), क़द: पाँच फ़ुट 2 इंच, रंगत: गंदुमी, आँखें: सियाह, बाल: सियाह, शनाख़्त का निशान: बाईं कनपटी पर भूरा तिल, वतन: कोचीन (रियासत केरला), मादरी ज़बान: मलयालम, आबाई मज़हब: सीरियन चर्च आफ़ मालाबार, ज़ाती अ’क़ाइद: कुछ नहीं,...
कौन सा शर्क़ किस तरह का ग़र्बक्या जुनूब-ओ-शुमाल की हैरत
अबू बकर रोड शाम के अंधेरे में गुम हो रही है। यूँ दिखाई देता है, जैसे कोई कुशादा सा रास्ता किसी कोयले की कान में जा रहा है... सख़्त बारिश में विरूंटा की बाड़, सफ़रीना का गुलाब, क़ुतुब सय्यद हुसैन मक्की के मज़ार शरीफ़ के खन्डर में, एक खिलते हुए...
“हाँ आज रात तो क़तई’ बर्फ़ पड़ेगी”, साहिब-ए-ख़ाना के बड़े बेटे ने कहा। “बड़ा मज़ा आएगा। सुब्ह को हम स्नोमैन बनाएँगे”, एक बच्चा चिल्लाया।...
“मगर शराब तो वाक़ई बुरी चीज़ है अलबत्ता सिगरेट पीना बुरी बात नहीं।” “साहब चार सिगरेट पहले यही बात मैंने उन लोगों से कही थी। बहर कैफ़ मैं तो ये मानने के लिए भी तैयार हूँ कि सिगरेट पीना गुनाह-ए-सगीरा है। मगर ग़ुस्सा मुझे उन सादा लौह हज़रात पर आता...
اس زمانے کے اندلس میں متوطن اکثر یہودیوں کی طرح ذئب بن صالح کی بھی زبان عربی تھی۔ اس کے مذہبی عقائد اور تصورات دنیاوی و دینی پر موسیٰ بن میمون (۱۱۳۵ء تا ۱۲۰۴ء۔ مرتب) کے فلسفے کا گہرا اثر تھا۔ موسیٰ بن میمون کی تعلیم یہ تھی کہ جہاں...
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