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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
कहानी
प्रेमचंद
नज़्म
वतनियत
اس دور ميں مے اور ہے ، جام اور ہے جم اور
ساقي نے بنا کي روش لطف و ستم اور