aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "جھنڈ"
इदारा-तुल-मुसन्निफ़ीन, झंग
पर्काशक
झुन्नू खां
लेखक
मकतबा क़ुरान अकेडमी, झंग
हज़रत ग़ुलाम दस्तगीर अकादमी, झंग
जॉन लेन दी बोडले हेड लिमिटेड, लंदन
मास्टर झंडे खाँ
गौरान्दाया जन्डहोक
जबरा ने ख़ौफ़-ज़दा निगाहों से अलाव की जानिब देखा। “मुन्नी से कल ये न जड़ देना कि रात ठंड लगी और ताप-ताप कर रात काटी। वर्ना लड़ाई करेगी।”...
तुम को पेड़ों के पीछे दरख़्तों के झुण्डऔर दीवार की पुश्त पर ढूँडने में मगन हूँ
इतने में भेड़ें खेत के पास आ गईं। झींगुर ने ललकार कर कहा, अरे ये भेड़ें कहाँ लिए आते हो। कुछ सूझता है कि नहीं? बुद्धू इन्किसार से बोला, महतो, डांड पर से निकल जाएँगी, घूम कर जाऊँगा तो कोस भर का चक्कर पड़ेगा। झींगुर, तो तुम्हारा चक्कर बचाने के...
रूपा ने सिसकियों में कहा, “तुम बार बार पति न कहो नत्थू, मेरी जवानी मेरी आशा, मेरी दुनिया, कभी की विध्वा हो चुकी है। तुम मेरी मांग में सींदूर भरना चाहते हो और मैं चाहती हूँ कि सारे बाल ही नोच डालूं... नत्थू अब कुछ नहीं हो सकेगा। मेरी झोली...
मैं आस-पास के मौसम से हूँ तर-ओ-ताज़ामैं अपने झुण्ड से निकलूँ तो बे-समर हो जाऊँ
झुण्डجھنڈ
group, cluster,
Tareekh-e-Jhang
बिलाल जुबैरी
Tazkira Auliya-e-Jhang
तज़किरा
Lal Jhanda Aur Inquilab-e-Hindustan
स्वतंत्रता आंदोलन
क़ौमी झंडे की कहानी
सय्यद इब्राहीम फ़िक्री
अन्य
Lahore Congress Ka Elaan
साधुरामदास समता
Sangeet Viddiya
संगीत
Sangeet Viddya
Kanton Ka Jhund
मंज़ूर वक़ार
Hazrat Jumman Shah R.A
Hayat-e-Mohammad
जीवनी
Hamara Jhanda
अननोन ऑथर
राजनीतिक
Islami Jhanda
रियाज़ुद्दीन रियाज़
नाटक / ड्रामा
झनक झनक पायल बाजे
फ़िल्मी-नग़्मे
Faishan Ka Jhanda
आर. पी. स्वतंत्र
“परे हट जाओ, मैं किनारे पर आना चाहती हूँ।” मैंने देखा आवाज़ समुंदर में से आ रही थी। लाँबे रेशमीं घने बाल और जल-परी का चेहरा। हँसता हुआ। मुस्कुराता हुआ और दूर परे उफ़ुक़ पर एक कश्ती, जिसका मटियाला बादबान धूप में सोने के पत्रे की तरह चमकता नज़र आ...
उसने दिल में दुहराया, अ’रब-ए-अ’ज़ीम। इसकी हिफ़ाज़त करना...
पंचायत की सदा किस के हक़ में उट्ठेगी उसके मुताल्लिक़ शेख़ जुम्मन को अंदेशा नहीं था। क़ुर्ब-ओ-जवार, हाँ ऐसा कौन था जो उनका शर्मिंदा-ए-मिन्नत न हो? कौन था जो उनकी दुश्मनी को हक़ीर समझे? किस में इतनी जुर्अत थी जो उनके सामने खड़ा हो सके। आसमान के फ़रिश्ते तो पंचायत...
नाक नोकीली, आँखें बड़ी जिनसे वहशत टपकती थी। सर पर ख़ुश्क और ख़ाक-आलूदा बालों का एक हुजूम। बड़े से भूरे कोट में वो वाक़ई शायर मालूम हो रहा था... एक दीवाना शायर, जैसा कि उसने ख़ुद इस नाम से अपने आपको मुतआ’रिफ़ कराया था। मैंने अक्सर औक़ात अख़बारों में एक...
जब वो कोठड़ी के अंदर जाने लगी तो अब्दुलग़फ़्फ़ार ने पूछा, “माँ, ये सुबह-सवेरे कौन आदमी आया था?” अब्दुलग़फ़्फ़ार इस क़िस्म के सवाल आमतौर पर पूछा करता था, इसलिए उसकी माँ जवाब दिए बग़ैर अन्दर चली गई और अपने छोटे लड़के को जगाने लगी, “ए रहमान, ए रहमान, उठ उठ।”...
सब सिख मिलकर हँसने लगे मगर परमेशर सिंह बच्चों की तरह बिलबिला कर कुछ यूँ रोया कि दूसरे सिख भौंचक्के से रह गए और परमेशर सिंह रोनी आवाज़ में जैसे बैन करने लगा, “सब बच्चे एक से होते हैं यारो... मेरा करतार भी तो यही कहता था। वो भी तो...
फूल के झुण्ड से हट कर कोई प्यासा भँवरातेरे पहलू से गुज़र जाए तो शक करता हूँ
“वो फ़रमाता है”, सौस ने एक रेशमी पार्चे का टुकड़ा अलमारी में से खींचा और पढ़ना शुरू’ किया... “इंसानों में ख़ौफ़-ओ-दहशत न फैलाओ ख़ुदा, इसकी सज़ा देगा। जो शख़्स कहता है सारी ताक़त और सारा इक़्तिदार मेरा है अक्सर वही ठोकर खा कर गिर भी पड़ता है। हमेशा बैत-ए-तरह्हुम में...
एक धांदली थी मगर इस धांदली में एक आतिशीं इंतशार था। लोग शो’लों की तरह भड़कते थे, बुझते थे, फिर भड़कते थे। चुनांचे इस भड़कने और बुझने, बुझने और भड़कने ने गु़लामी की ख़्वाबीदा उदास और जमाइयों भरी फ़िज़ा में गर्म इर्तिआ’श पैदा कर दिया था। शहज़ादा ग़ुलाम अली ने...
कचहरियों से लेकर लॉ कॉलेज तक बस यही कोई दो फ़र्लांग लंबी सड़क होगी, हर-रोज़ मुझे इसी सड़क पर से गुज़रना होता है, कभी पैदल, कभी साईकल पर, सड़क के दो रू ये शीशम के सूखे-सूखे उदास से दरख़्त खड़े हैं। इनमें न हुस्न है न छाँव, सख़्त खुरदरे तने...
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