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नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
कैसे मग़रूर हसीनाओं के बरफ़ाब से जिस्म
गर्म हाथों की हरारत में पिघल जाते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नूर-जहाँ के मज़ार पर
कैसे मग़रूर शहंशाहों की तस्कीं के लिए
साल-हा-साल हसीनाओं के बाज़ार लगे
साहिर लुधियानवी
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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
तंज़-ओ-मज़ाह
बदसूरत औरत, हसीनाओं को परखने का आला। आदम, ख़ुदा की वो ग़लती जिसकी वो आज तक तस्हीह नहीं करसका।...