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ग़ज़ल
शकील बदायूनी
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नज़्म
मुहासरा
सो ये जवाब है मेरा मिरे अदू के लिए
कि मुझ को हिर्स-ए-करम है न ख़ौफ़-ए-ख़म्याज़ा
अहमद फ़राज़
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ग़ैर से नफ़रत जो पा ली ख़र्च ख़ुद पर हो गई
जितने हम थे हम ने ख़ुद को उस से आधा कर लिया