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मर्सिया
रस्ते से लोग फ़िज़्ज़ा ने बढ़ कर हटा दिए
हमसाइयों ने गिरफों के पर्दे गिरा दिए
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
नज़्म
इक सितारा आदर्श का
रुस्तगार अज़-पंजा-ए-बेदर्दी-ए-लैल-ओ-नहार
बंद आँखों के नगर में
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
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विषय
रोज़गार
रोज़गार
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ग़ज़ल
ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या