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ग़ज़ल
सलीम कौसर
नज़्म
आदमी-नामा
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
एक मुलाक़ात
रुकी तो ऐसे कि जैसे तिरी रियाज़त को
अब इस समर से ज़ियादा समर मिले न मिले
साहिर लुधियानवी
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