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ग़ज़ल
हैं 'शाद' ओ 'सफ़ी' शाइर या 'शौक़' ओ 'वफ़ा' 'हसरत'
फिर 'ज़ामिन' ओ 'महशर' हैं 'इक़बाल' भी 'वहशत' भी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
'सफ़ी' को मुस्कुरा कर देख लो ग़ुस्से से क्या हासिल
उसे तुम ज़हर क्यों देते हो जो मरता है शक्कर से
सफ़ी औरंगाबादी
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ग़ज़ल
हसीन हर एक हो सकता नहीं बे-शक 'सफ़ी' बे-शक
वही होता है जो अल्लाह को मंज़ूर होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
'सफ़ी' को शाइ'री से मिल गई हर-दिल-अज़ीज़ी भी
दरोग़-ए-मस्लहत-आमेज़ भी है क्या हुनर देखो
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
कसरत से जब नाम-ओ-निशाँ है क्या होंगे गुमनाम 'सफ़ी'
नक़्श दिलों पर नाम है अपना नक़्श-ए-लहद मिट जाने दो