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ग़ज़ल
हुस्न और उस पे हुस्न-ए-ज़न रह गई बुल-हवस की शर्म
अपने पे ए'तिमाद है ग़ैर को आज़माए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
ज़मानी ज़द में ज़न की इक गुमान-ए-लाज़िमानी है
गुमाँ ये है कि बाक़ी है बक़ा हर आन फ़ानी है
जौन एलिया
तंज़-ओ-मज़ाह
हरी चंद अख़्तर
नज़्म
इल्म-ओ-इश्क़
علم نے مجھ سے کہا عشق ہے ديوانہ پن
عشق نے مجھ سے کہا علم ہے تخمين و ظن
अल्लामा इक़बाल
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रेख़्ता शब्दकोश
suu-e-zan
सू-ए-ज़नسُوءِ ظَن
संदेह और शक, कुधारणा, किसी की क्षमता या दृष्टिकोण या चरित्र के बारे में संदेह, किसी की ओर से बुरा ख़याल
zan karnaa
ज़न करनाظَن کَرنا
suppose, surmise, suspect
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ग़ज़ल
मशाम-ए-तेज़ से मिलता है सहरा में निशाँ उस का
ज़न ओ तख़मीं से हाथ आता नहीं आहू-ए-तातारी
अल्लामा इक़बाल
तंज़-ओ-मज़ाह
मजरूह और मक़ता तो मुलाहिज़ा हो; गर मुसीबत थी तो ग़ुर्बत में उठा लेते ‘असद’...
सय्यद आबिद अली आबिद
तंज़-ओ-मज़ाह
(कातबीन ये कह कर रुके ही थे कि ग़ालिब ने कराह कर आह की और गिड़गिड़ाकर बोले)...
सिराज अहमद अलवी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
बन गए अपनी गृहस्ती के जो दुश्मन तुम हो
हो के ग़ैरों पे फ़िदा बीवी से बद-ज़न तुम हो