aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "عجائب"
अजाइब घर, लाहौर
पर्काशक
अजाएब चित्रकार
लेखक
महाराजा ग से रेस कोर्स पर अशोक की मुलाक़ात हुई। इसके बाद दोनों बेतकल्लुफ़ दोस्त बन गए।महाराजा ग को रेस के घोड़े पालने का शौक़ ही नहीं ख़ब्त था। उसके अस्तबल में अच्छी से अच्छी नस्ल का घोड़ा मौजूद था और महल में जिसके गुंबद रेस कोर्स से साफ़ दिखाई देते थे। तरह तरह के अजाइब मौजूद थे।
मीम नून अरशद: ख़ूगर साहिब ये कहना चाहते हैं कि हम एक नई दुनिया में रहते हैं। ये रेडियो हवाई जहाज़ और धमाके से फटने वाली बमों की दुनिया है। ये भूक, बेकारी, इन्क़िलाब और आज़ादी की दुनिया है। इस दुनिया में रह कर हम अपना वक़्त हुस्न-ओ-इश्क़, गुल-ओ-बुलबुल, शीरीं-फ़र्हाद के अफ़सानों में ज़ाए नहीं कर सकते। शायरी के लिए और भी मौज़ू-ए-सुख़न हैं, जैसा कि हमारे एक...
نئی چیز لاتی تھی اس کے حضورعجائب، غرائب پرستان کے
क़ुर्बान परी मुख पे हुई चोब सी जल करये बात अजाइब मह-ए-ताबाँ सूँ कहूँगा
चुनाँचे बलोची सिपाहियों ने निहायत ख़ंदा-पेशानी से इस बात का ज़िम्मा लिया और हर डिब्बे में पंद्रह बीस लाशें रख दी गईं। इसके बा'द मजमे ने हवा में फ़ायर किया और गाड़ी चलाने के लिए स्टेशन मास्टर को हुक्म दिया।मैं चलने लगी थी कि फिर मुझे रोक दिया गया और मजमे ने सर्ग़ने में हिंदू पनाह-गुज़ीनों से कहा कि दो सौ आदमियों के चले जाने से उनके गाँव वीरान हो जाएँगे और उनकी तिजारत तबाह हो जाएगी। इसलिए वो गाड़ी में से दो सौ आदमी उतार कर अपने गाँव ले जाएँगे। चाहे कुछ भी हो। वो अपने मुल्क को यूँ बर्बाद होता हुआ नहीं देख सकते। इस पर बलोची सिपाहियों ने उनके फ़हम-ओ-ज़का और उनकी फ़रासत-तब'अ की दाद दी और उनकी वतन-दोस्ती को सराहा। चुनाँचे इस पर बलोची सिपाहियों ने हर डिब्बे से कुछ आदमी निकाल कर मजमे के हवाले किए। पूरे दो सौ आदमी निकाले गए। एक कम न एक ज़्यादा।
अजाइबعجائب
wonders
विचित्रताएँ, आश्चर्यजनक बातें
‘अजीब' का बहुः, विचित्रताएँ, अजीब बातें ।
फ़सान-ए-अजाइब
रजब अली बेग सुरूर
दास्तान
Fasana-e-Ajaib
Ajaib-ul-Qisas
आफ़ताब शाह आलम सानी
फ़साना-ए-अजाइब
फ़िक्शन
अजाइबुल असफ़ार
इब्न-बतूता
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
फ़साना-ए-अजाइब का तन्क़ीदी मुताला
सय्यद ज़मीर हसन
फ़िक्शन तन्क़ीद
फ़साना-ए-अजाइब बा-तसवीर
Ajaib-ul-Makhluqat Urdu
Fasana-e-Ajaib Ka Tanqeedi Mutala
आलोचना
इर्तिज़ा करीम
Intikhab Fasana-e-Ajaib
रस्ता रस्ता एक अजाइब-गाह 'मुज़फ़्फ़र'हँसती आँखों से जाना शश्दर आ जाना
تاریخ اور شعر کا فرق ایک مثال کے ذریعہ سے اچھی طرح سمجھ میں آسکتا ہے۔ ایک شخص جنگل میں جا رہا ہے۔ کسی گوشہ سے ایک مہیب شیر ڈکارتا ہوا نکلا، اس کی پر رعب گونج، بھیانک چہرہ، خشمگیں آنکھوں نے اس شخص کے دل کو لرزا دیا، یہ شخص کسی کے سامنے شیر کا حلیہ اور شکل و صورت جن مؤثر لفظوں میں بیان کرے گا، وہ شعر ہے۔علم الحیوانات کا ایک عالم کسی عجائب خانہ میں جاتا ہے، وہاں ایک شیر کٹہرہ میں بند ہے، یہ عالم شیر کے ایک ایک عضو کو علمی حیثیت سے دیکھتا ہے، اور علمی طریقہ سے کسی مجمع کے سامنے شیر پر لکچر دیتا ہے، یہ سائنس، تاریخ یا واقعہ نگاری ہے۔
ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थीं। नदियों में बतखें तैर रही थीं। ट्रेन के एक डिब्बे में पाँच मुसाफ़िर चुप-चाप बैठे थे।एक बूढ़ा जो खिड़की से सर टिकाए बाहर देख रहा था। एक फ़र्बा औ’रत जो शायद उसकी बेटी थी और उसकी तरफ़ से बहुत फ़िक्रमंद नज़र आती थी। ग़ालिबन वो बीमार था। सीट के दूसरे सिरे पर एक ख़ुश शक्ल तवील-उल-क़ामत शख़्स, चालीस साल के लगभग उ’म्र, मुतबस्सिम पुर-सुकून चेहरा एक फ़्रैंच किताब के मुताले’ में मुनहमिक था। मुक़ाबिल की कुर्सी पर एक नौजवान लड़की जो वज़्अ’ क़त्अ’ से अमरीकन मा’लूम होती थी, एक बा-तस्वीर रिसाले की वरक़-गर्दानी कर रही थी और कभी-कभी नज़रें उठा कर सामने वाले पुर-कशिश शख़्स को देख लेती थी। पाँचवें मुसाफ़िर का चेहरा अख़बार से छिपा था। अख़बार किसी अदक़ अजनबी ज़बान में था। शायद नार्देजियन या हंगेरियन, या हो सकता है आईसलैंडिक। इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो आईसलैंडिक में बातें करते हैं। पढ़ते लिखते और शे’र कहते हैं। दुनिया अ’जाइब से ख़ाली नहीं।
عشق حاضر ہے عشق غائب ہےعشق ہی مظہر عجائب ہے
“साहिबान मिर्ज़ा असद ख़ां ग़ालिब दिल्ली के रहने वाले थे, उर्दू-फ़ारसी दोनों ज़बान के शायर थे। शराब बहुत पीते थे इसलिए उनकी उम्र तंग दस्ती में गुज़री। दिल्ली हिन्दोस्तान का दार-उल-सल्तनत है। वहां एक घंटाघर भी है। चाँदनी चौक में सौदा बेचने वालों की सदाएँ बहुत प्यारी होती हैं हर तरफ़ से आवाज़ें आती हैं, ग़ालिब अंड गोएटे।”मजमा ने पुरज़ोर तालियाँ बजाकर आसमान सिर पर उठा लिया और जब तालियों की गूंज ख़त्म हुई तो सरदार साहिब ने तक़रीर को जारी रखते हुए कहा,
(नुक़ूश जश्न-ए-आज़ादी नंबर 1948)
تعصب اور غصہ کے جذبات عموماً تنگ نظری کی بنا پر پیدا ہوتے رہتے ہیں۔ انسان کی نظر جوں جوں وسیع ہوتی جاتی ہے، دل میں ہمدردی، رواداری، دوسروں کی ہوا خواہی زیادہ پیدا ہوتی جاتی ہے۔ البتہ فطرت کی نیرنگیوں، مشیت تکوینی کی عجائب کاریوں، علم مطلق کے مظہروں کو دیکھ کر حیرت ضرور طاری ہوتی رہتی ہے۔شیخ جی کی نظر میں میں ہوں فقط
मेरे चेहरे पर मुनक़्क़श इस तरह तारीख़ हैजैसे इक कोहना अजाइब घर का बाशिंदा हूँ मैं
नौहों की तर्जे़ं निकालना लड़कियों का ख़ास मश्ग़ला था। जहाँ कोई चलता-चलता लेकिन ग़मगीं सी धुन का गीत रेडियो पर सुना, झट ज़रा सी तबदीली कर के नज्म-उल-मिल्लत के किसी नौहे पर उस धुन को चिपका दिया। तलअत आरा इस मुआ'मले में बड़ी रिजअ'त-पसंद वाक़े' हुई थी। उसका कहना था कि भई ये ग़लत बात है। ये क्या सातवीं की रात को मा'लूम हो कि कानन बाला का रिकार्ड बज रहा है। तौ...
ننگی عورتوں کی تصویریں بنائی جاتی تھیں، ننگی عورتوں کے مجسمے تراشے جاتے تھے۔ اسی پر موقوف نہیں، ان کو بڑے پیار سے عجائب خانوں میں سجایا جاتا تھا۔ ان کے بنانے والوں کو انعام و اکرام دیے جاتے تھے۔۔۔ جی ہاں، انعام و اکرام۔۔۔ وظیفے دیے جاتے تھے، القاب عنایت کئے جاتے تھے کہ واہ مصور صاحب، آپ نے ننگی عورت کی تصویر کیا خوب کھینچی ہے۔۔۔ یہ پستان۔۔۔ لا حول ...
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