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ग़ज़ल
नहनो-अक़रब की नहीं है रम्ज़ से तू आश्ना
वर्ना वो नज़दीक है तू आप उस से दूर है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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ग़ज़ल
रक़्स इस ज़ोहरा-जबीं का है अदू के घर में
मेहर मीज़ाँ में है अक़रब में क़मर आज की रात
नसीम मैसूरी
ग़ज़ल
पड़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले
मूज़ियों के मूज़ी को फ़िक्र-ए-नीश-ए-अक़रब क्या
यगाना चंगेज़ी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
इश्क़ में गेसू ओ अबरू के अगर देनी है जान
नीश-ए-अक़रब खा के पी ले ज़हर थोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
शब नज़र की मैं ने फ़ुर्क़त में जो सू-ए-आसमाँ
अज़दहा थी कहकशाँ अक़रब हर इक सय्यारा था
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इश्क़ किस ज़ात का अक़रब है कि लगते ही नीश
दिल के साथ आँखों से पानी हो बहा क्या क्या कुछ