aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "فسادات"
मकतबा-ए-फ़साना, इलाहाबाद
पर्काशक
फ़साना एजेंसी, लाहौर
मिरा घर फ़सादात में जल चुकावतन जाऊँ तो किस के घर जाऊँ मैं
"कौन से घर में?" बुज़ुर्ग ने पूछा।"रहतकी मुहाजिरों के घर में" लड़के ने कहा।
हो गया अपने पड़ोसी का पड़ोसी दुश्मनआदमिय्यत भी यहाँ नज़्र-ए-फ़सादात हुई
जब वो ऊपर आया था तो उसका दिल-ओ-दिमाग़ सख़्त मुज़्तरिब और हैजानज़दा था। लेकिन आधे घंटे ही में वो इज़्तिराब और हैजान जो उसको बहुत तंग कर रहा था। किसी हद तक ठंडा हो गया था वो अब साफ़ तौर पर सोच सकता था।कृपाल कौर और उसका सारा ख़ानदान मोहल्ले में था, जो कट्टर मुसलमानों का मर्कज़ था। यहां कई मकानों को आग लग चुकी थी कई जानें तल्फ़ हो चुकी थीं। त्रिलोचन इन सब को ले आया होता। मगर मुसीबत ये थी कि कर्फ़्यू नाफ़िज़ हो गया था और वो भी न जाने कितने घंटों का... ग़ालिबन अड़तालीस घंटों का...
गांव के लोग अभी सोग में मसरूफ़ थे कि करीम दाद ने शादी करली। उसी मुटियार जीनां के साथ जिस पर एक अर्से से उसकी निगाह थी। जीनां सोगवार थी। उसका शहतीर जैसा कड़ियल जवान भाई बलवों में मारा गया था। माँ-बाप की मौत के बाद एक सिर्फ़ वही उसका सहारा था।
दंगों पर आधारित दस सर्वश्रेष्ठ उर्दू कहानी संग्रह यहाँ पढ़ें। इस पृष्ठ में अब तक की सर्वश्रेष्ठ दंगा आधारित कहानियाँ मौजूद हैं, जिन्हें रेख़्ता ने ई-बुक पाठकों के लिए चुना है।
साम्प्रदायिक दंगे
फ़साद पर ये शायरी फ़साद की भयानक सूरतों और उन के नतीजे में बर्पा होने वाली इंसानी तबाही का तख़्लीक़ी बयान है। आज के अहद में बेश्तर इंसानी आबादियाँ फ़साद की किसी न किसी शक्ल की ज़द में हैं और जानी, माली, तहज़ीबी और सक़ाफ़ती तबाही को एक सिलसिला जारी है। ऐसे दौर में अगर ये शायरी हमारे अंदर पैदा होने वाले जज़्बों को शांत कर दे तो बड़ी बात होगी।
फ़सादातفسادات
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फ़सादात के अफ़्साने
हसन अब्बास रज़ा
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Firqa Wariyat Aur Firqa Warana Fasadat
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Fasadat-e-Panjab Ki Tahqiqati Adalat Ke Das Sawalon Ke Jwabaat Aur Maulana Maududii Ke Jwabat Par Tabsara
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फ़िक्शन
फ़साना-ए-अजाइब
Aaye Apne Desh Ko Bachayen
जावेद अशरफ़ क़ासमी
बातें
पहले छुरा भोंकने की इक्का दुक्का वारदात होती थीं, अब दोनों फ़रीक़ों में बाक़ायदा लड़ाई की ख़बरें आने लगी जिनमें चाक़ू-छुरियों के इलावा कृपाणें, तलवारें और बंदूक़ें आम इस्तेमाल की जाती थीं। कभी-कभी देसी साख़्त के बम फटने की इत्तिला भी मिलती थी।अमृतसर में क़रीब क़रीब हर एक का यही ख़्याल था कि ये फ़िर्क़ावाराना फ़सादात देर तक जारी नहीं रहेंगे। जोश है, जूंही ठंडा हुआ, फ़िज़ा फिर अपनी असली हालत पर आजाएगी। इससे पहले ऐसे कई फ़साद अमृतसर में हो चुके थे जो देर पा नहीं थे। दस से पंद्रह रोज़ तक मार कटाई का हंगामा रहता था, फिर ख़ुद बख़ुद फ़िरो हो जाता था। चुनांचे पुराने तजुर्बे की बिना पर लोगों का यही ख़याल था कि ये आग थोड़ी देर के बाद अपना ज़ोर ख़त्म करके ठंडी हो जाएगी। मगर ऐसा न हुआ, बलवों का ज़ोर दिन ब दिन बढ़ता ही गया।
उस ख़ाके के तैयार कर चुकने के बाद जलसे के दिन तक हर रोज़ उस पर एक नज़र डालता रहा और आईने के सामने खड़े हो कर बा’ज़ मार्का आरा फ़िकरों की मश्क़ करता रहा। उसके बाद की मुस्कुराहट की ख़ास मश्क़ बहम पहुंचाई। खड़े हो कर दाएँ से बाएँ और बाएँ से दाएँ घूमने की आ’दत डाली ताकि तक़रीर के दौरान आवाज़ सब तरफ़ पहुंच सके और सब इत्मिनान के साथ एक-एक लफ़्ज़ सुन लें।मुरीदपुर का सफ़र आठ घंटे का था। रस्ते में सांगा के स्टेशन पर गाड़ी बदलनी पड़ती थी। अंजुमन-ए-नौजवानान-ए-हिंद के बा’ज़ जोशीले अरकान वहां इस्तक़बाल को आये हुए थे। उन्होंने हार पहनाए और कुछ फल वग़ैरा खाने को दिये। सांगा से मुरीदपुर तक उनके साथ अहम सियासी मसाइल पर बहस करता रहा। जब गाड़ी मुरीदपुर पहुंची तो स्टेशन के बाहर कम-अज़-कम तीन हज़ार आदमियों का हुजूम था जो मुतवातिर ना’रे लगा रहा था। मेरे साथ जो वालनटियर थे उन्होंने कहा, "सर बाहर निकालिए। लोग देखना चाहते हैं।" मैंने हुक्म की ता’मील की। हार मेरे गले में थे। एक संगतरा मेरे हाथ में था। मुझे देखा तो लोग और भी जोश के साथ ना’रा-ज़न हुए। बमुश्किल तमाम बाहर निकला। मोटर में मुझे सवार कराया गया और जलूस जलसा-गाह की तरफ़ चला।
फ़िर्का-वाराना फ़सादात ने कल क़त्ल किया।।।!
दोनों भाई एक साथ रहते थे ताकि ख़र्च कम हो। बड़ी अच्छी गुज़र रही थी। एक सिर्फ़ अल्लाह रक्खा को जो बड़ा था, अपने छोटे भाई के चाल-चलन के मुतअल्लिक़ शिकायत थी। वो शराब पीता था, रिश्वत लेता था और कभी कभी किसी ग़रीब और नादार औरत को फांस भी लिया करता था। मगर अल्लाह रक्खा ने हमेशा चश्मपोशी से काम लिया था कि घर का अम्न-ओ-सुकून दरहम बरहम न हो।दोनों शादीशुदा थे। अल्लाह रक्खा की दो लड़कियां थीं। एक ब्याही जा चुकी थी और अपने घर में ख़ुश थी। दूसरी जिसका नाम सुग़रा था, तेरह बरस की थी और प्राइमरी स्कूल में पढ़ती थी।
मुझे वो वक़्त अच्छी तरह याद है जैसे कल की बात हो। सुब्ह के दस ग्यारह बजे होंगे। रेलवे स्टेशन से लड़कियों के ताँगे आ आकर फाटक में दाख़िल हो रहे थे। होस्टल के लॉन पर बरगद के दरख़्त के नीचे लड़कियाँ अपना-अपना अस्बाब उतरवा कर रखवा रही थीं। बड़ी सख़्त चिल-पौं मचा रखी थी। जिस वक़्त मैं अपने ताँगे से उतरी वो मेरा ढाटे से बँधा हुआ सफ़ेद चेहरा देखकर ऐसी हैरत-ज़दा ...
चवन्नी लाल को अच्छी पोशिश और अच्छे खाने का बहुत शौक़ था। तबीयत में नफ़ासत थी। चुनांचे वो लोग जो उसके मकान में एक दफ़ा भी गए। उसके सलीक़े की तारीफ़ अब तक करते हैं। एन डब्लू आर के एक नीलाम में उसने रेल के डिब्बे की एक सीट ख़रीदी थी। उसको इसने अपने दिमाग़ से बहुत ही उम्दा दीवान में तबदील करवा लिया था। चवन्नी लाल को ये इस क़दर पसंद था कि उसे अपनी ख़्वाब-गाह...
बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदुओं और मुसलमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़्तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से कहा, “चलो माँ, यहां से चलें।”बूढ़ी नायिका ने अपने पोपले मुँह में पानदान से छालिया के बारीक बारीक टुकड़े डालते हुए उससे पूछा, “कहाँ जाऐंगे बेटा?”
मुमताज़ उस रोज़ बहुत ही पुरजोश था। हम सिर्फ़ तीन थे जो उसे जहाज़ पर छोड़ने के लिए आए थे, वो एक ग़ैर मुतय्यन अर्से के लिए हमसे जुदा हो कर पाकिस्तान जा रहा था... पाकिस्तान, जिसके वजूद के मुतअल्लिक़ हममें से किसी को वहम ओ गुमान भी न था।हम तीनों हिंदू थे। मग़रिबी पंजाब में हमारे रिश्तेदारों को बहुत माली और जानी नुक़्सान उठाना पड़ा था। ग़ालिबन यही वजह थी कि मुमताज़ हमसे जुदा हो रहा था। जुगल को लाहौर से ख़त मिला कि फ़सादात में उसका चचा मारा गया है तो उसको बहुत सदमा हुआ। चुनांचे इसी सदमे के ज़ेर-ए-असर बातों बातों में एक दिन उसने मुमताज़ से कहा, “मैं सोच रहा हूँ अगर हमारे मुहल्ले में फ़साद शुरू हो जाये तो मैं क्या करूंगा।"
“वो... औरत के क़ाबिल नहीं, नुक़्स दूर करने के लिए वो फ़क़ीरों और सन्यासियों से टोने टोटके लेता रहता है।”मुस्तक़ीम ने कहा, “ये बात तो पागल होने से ज़्यादा अफ़सोसनाक है, महमूदा के लिए तो ये समझो कि इज़दवाजी ज़िंदगी एक ख़ला बन कर रह गई है।”
उसने कहा, “ठीक है, बेगम साब, तुम झूट नाहीं बोलेगा।”मेरी बीवी ने साठ कपड़ों के हिसाब से जब उसको दाम दिए तो उसने माथे के साथ रुपे छुवा कर सलाम किया और चलने लगा।
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