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नज़्म
वक़्त
ख़ुद अपनी आवाज़ हो कि माहौल की सदाएँ
ये ज़ेहन में बनती और बिगड़ती हुई फ़ज़ाएँ
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
झूम के फिर चलीं हवाएँ वज्द में आईं फिर फ़ज़ाएँ
फिर तिरी याद की घटाएँ सीनों पे छा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
दिल मुजस्सम शेर-ओ-नग़्मा वो सरापा रंग-ओ-बू
क्या फ़ज़ाएँ हैं कि जिन में हल हुआ जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
ख़मोशियों की सदाएँ बुला रही हैं तुम्हें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
ये गुम्बद-ए-अफ़्लाक ये ख़ामोश फ़ज़ाएँ
ये कोह ये सहरा ये समुंदर ये हवाएँ