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नज़्म
अंदेशा
फिर कहेंगे कि हँसी में भी ख़फ़ा होती हैं
अब तो 'रूही' की नमाज़ें भी क़ज़ा होती हैं
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदा-सरी
चाक-ए-दिल और भी हैं चाक-ए-क़बा और भी हैं
साहिर लुधियानवी
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ई-पुस्तक
क़िस्सा
क़िस्सा
विशेष
कि़स्सा दास्तान
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नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
सूरत-ए-शमशीर है दस्त-ए-क़ज़ा में वो क़ौम
करती है जो हर ज़माँ अपने अमल का हिसाब
अल्लामा इक़बाल
मर्सिया
अदल आगे बढ़ा हुक्म ये देता है क़ज़ा को
हाँ बांध ले ज़ुल्म-ओ-सितम-ओ-जोर-ओ-जफ़ा को
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
असर ये भी है इक मेरे जुनून-ए-फ़ित्ना-सामाँ का
मिरा आईना-ए-दिल है क़ज़ा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मरहूम और महरूम
मिरी हयात ये है और ये तुम्हारी क़ज़ा
ज़ियादा किस से कहूँ और किस को कम बोलो