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नज़्म
सर-ए-वादी-ए-सीना
फिर दिल को मुसफ़्फ़ा करो, इस लौह पे शायद
माबैन-ए-मन-ओ-तू नया पैमाँ कोई उतरे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दिल को किस शक्ल से अपने न मुसफ़्फ़ा रक्खूँ
जल्वा-गर यार की सूरत है इस आईने में
बहादुर शाह ज़फ़र
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नज़्म
मनाज़िर-ए-सहर
ख़ुनकी वो बयाबाँ की वो रंगीनी-ए-सहरा
वो वादी-ए-सरसब्ज़ वो तालाब-ए-मुसफ़्फ़ा
जोश मलीहाबादी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
देख कर रू-ए-मुसफ़्फ़ा यार का हैरत हुई
आइने हैं पुश्त-बर-दीवार क़ैसर-बाग़ में