aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مصلحتاً"
शाज़ तमकनत
1933 - 1985
शायर
शैख़ सादी शीराज़ी
1210 - 1292
लेखक
सादी शीराज़ी
1210 - 1291
अबू मोहम्मद मुस्लेह
मोहम्मद मुसलेहुद्दीन सिद्दीक़ी
मसलिहुद्दी अहमद असीर काकोरवी
अबू मुहम्मद मुस्लेह अबुल उला
मुसलेहुद्दीन सादी
संपादक
मुसलेहुद्दीन अंसारी
मोहम्मद मुसलेहुद्दी मुसलेह
मत्बा' मुस्लेह-उल-मताबे' दिल्ली
पर्काशक
मतबा मुस्लिहुल-मताबे, दिल्ली
मोहम्मद मसलेहुद्दीन
मोहम्मद मसलेहुद्दीन काज़िम
इक तुझ को देखने के लिए बज़्म में मुझेऔरों की सम्त मस्लहतन देखना पड़ा
ज़रा भी दख़्ल नहीं इस में इन हवाओं काहमें तो मस्लहतन अपनी ख़ाक उड़ानी है
चुप-चाप सही मस्लहतन वक़्त के हाथोंमजबूर सही वक़्त से हारा तो नहीं हूँ
آج گو مصلحتاً، بیکس و ناچار ہوںورثۂِ احمدِ مختار کا، مختار ہوں میں
مصلحتاً کہہ ديا ميں نے مسلماں تجھے تيرے نفس ميں نہيں، گرمي يوم النشور
महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिध्द
तरग़ीबी या प्रेरक शायरी उन लम्हों में भी हमारे साथ होती है जब परछाईं भी दूर भागने लगती है। ऐसी मुश्किल घड़ियाँ ज़िन्दगी में कभी भी रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं। हौसलों के चराग़ बुझने लगते हैं और उम्मीदों की लौ मद्धम पड़ जाती है। तरग़ीबी शायरी इन हालात में ढारस बंधाती और हिम्मत देती है।
महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिध्द।
Samajiyaat
समाज विज्ञान
Auliya-e-Dakkan Aur Quran Ma Salateen-e-Dakkan Aur Quran
शोध / समीक्षा
Sociology
Tazkira-e-Ahl-e-Dehli
सर सय्यद अहमद ख़ान
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Kalam-e-Musleh
Quran Aur Iqbal
Meer Mohammad Momin Hayat Aur Karname
सय्यद मुहीउद्दीन क़ादरी ज़ोर
शोध
Mashahir-e-Uloom Islamia Aur Mufakkirin-o-Muslihin
मोहसिन उस्मानी नदवी
Tauzih-ul-Qur'an
इस्लामियात
Mohammad Bin Abdul Wahab Ek Mazloom Aur Badnam Musalleh
मसऊद आलम नदवी
Shaheed-e-Karbala Quran Ki Roshni Mein
Samajiyat
Imam Maududi : Ek Musleh, Mufakkir, Ek Mujaddid
अल्लामा यूसुफ़-उल-क़रज़ावी
جن ۱۴ زبانوں کی سرپرستی بھارت کی حکومت کر رہی ہے ان میں سے ایک اردو بھی ہے۔ ہرچند کہ بھارت کی قومی زبان ہندی قرار دی گئی ہے۔ پھر بھی بھارت کے ایک سرے سے دوسرے سرے تک اردو ہی راج رج رہی ہے، بلکہ یوں کہنا زیادہ مناسب...
सीढ़ियों में हल्के क़दमों की चाप सुनाई देती, और सब जान लेते कि दीप कुमार आ रहा है। वो एक बाईस साला ख़ुश-रू शर्मीला नौजवान था। चम्पई रंग, घुँघराले बाल, वो एक अमीर ज़मींदार का बेटा था और आला ता'लीम के लिए दार-उल-सल्तनत में आया था। मगर एम.ए. में फ़ेल...
'अ' अपने दोस्त 'ब' को अपना हम-मज़हब ज़ाहिर करके उसे महफ़ूज़ मक़ाम पर पहुंचाने के लिए मिल्ट्री के एक दस्ते के साथ रवाना हुआ। रास्ते में 'ब' ने जिसका मज़हब मस्लिहतन बदल दिया गया था। मिल्ट्री वालों से पूछा,...
میں اصل میں آدمی ہوں مگر مصلحتاً مکھی بن گیا ہوں۔ مگر پھر اسے خیال گزرا کہ یہ بھی تو ہوسکتا ہے کہ وہ اصل میں مکھی ہو اور درمیان میں آدمی بن گیا ہو۔ ہر چیز اپنی اصل کی طرف لوٹتی ہے۔ میں کہ مکھی تھا پھر مکھی بن...
میں نے کبھی لکھا تھا کہ میری زندگی میں تین بڑے حادثے ہیں، پہلا میری پیدائش کا جس کی تفصیلات کا مجھے کوئی علم نہیں، دوسرا میری شادی کا، تیسرا میرا افسانہ نگار بن جانے کا۔ آخری حادثہ چونکہ ابھی تک چلا جا رہا ہے، اس لئے اس کے متعلق...
लोग उसे मस्लहतन कुछ न कहेंउस की औक़ात मगर जानते हैं
हाजी साहब ने मस्लिहतन कुछ दिनों से उस बाज़ार में जाना छोड़ रखा था मगर इस नए फ़ित्ने का हाल सुना तो फ़ौरन उनके दिल में एक नया जोश पैदा हुआ। उन्होंने दिल में कहा कि इन औरतों को जल्द से जल्द राह-ए-रास्त पर लाना चाहिए। वर्ना ख़ुदा मालूम ये...
(3) शतरंज के इलावा ताश भी नहीं खेलूंगा। सिवाए इतवार के रात को वो भी नहीं। (4) रात को देर कर के आना शतरंज खेलते रह जाने के बराबर मुतसव्वर होगा। कोई सबूत लिए बग़ैर तसव्वुर कर लिया जाएगा कि शतरंज खेली गई। कोई उज़्र तस्लीम ना किया जाएगा।...
عالم خاکی میں تھا مصلحتاً جلوہ نماعرش اعظم سے بھی تھی ورنہ پرے تیری جا
कभी भी हम ने न की कोई बात मस्लहतनमुनाफ़िक़त की हिमायत, नहीं, कभी नहीं की
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