aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ملالؔ"
सग़ीर मलाल
1951 - 1992
शायर
क़मर मलाल
born.1992
ज़िंदगी प्यारी है लोगों को अगर इतनी 'मलाल'क्यूँ मसीहाओं को ज़िंदा नहीं रहने देते
'मलाल' ऐसे कई लोग होंगे रस्ते मेंजो तुम से तेज़ या आहिस्ता चल रहे होंगे
जो देख लेते हैं चीज़ों के आर-पार 'मलाल'किसी भी चीज़ को इतना बुरा नहीं कहते
फ़ज़ा ज़मीन की थी इतनी अजनबी कि 'मलाल'सितारा-वार कहीं राख हो गया होगा
सूरज है रौशनी की किरन इस जगह 'मलाल'वुसअत में काएनात अंधेरे का जाल है
उम्र का वह हिस्सा जो उमंगों, आरज़ुओं और रंगीनियों से भरा होता है, जवानी है। जज़्बों की आंच से चट्टानों को भी पिघला देने का यक़ीन इस उम्र में सब से ज़ियादा होता है। चाहने और चाहे जाने के ख़्वाबों में डूबे रहने की यह उम्र शायरी के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं। इस उम्र का नशा किस शायर के कलाम में नहीं मिलता जवानी शायरी पूरे हुस्न और शबाब के साथ आपकी निगाह-ए-करम की मुन्तज़िर हैः
माशूक़ की एक निगाह के लिए तड़पना और अगर निगाह पड़ जाए तो उस से ज़ख़्मी हो कर निढाल हो जाना आशिक़ का मुक़द्दर होता है। एक आशिक़ को नज़र अंदाज करने के दुख, और देखे जाने पर मिलने वाले एक गहरे मलाल से गुज़रना होता है। यहाँ हम कुछ ऐसे ही मुंतख़ब अशआर पेश कर रहे हैं जो इश्क़ के इस दिल-चस्प बयानिए को बहुत मज़ेदार अंदाज़ में समेटे हुए हैं।
Shahr-e-Malal
इरफ़ान सिद्दीक़ी
कुल्लियात
Ungliyon Par Ginti Ka Zamana
अफ़साना
Aafrinash
नॉवेल / उपन्यास
Gham-e-Pur Malal
हकीम मोहम्मद शुऐब
Gard-e-Malal
हमीद नसीम
Ikhtilaf
Bekar Aamad
Subh-e-Malal Wa Sham-e-Gham
मुंशी अहमद हुसैन ख़ाँ
आत्मकथा
Malal-e-Sibtain
गौहर अली ख़ां गौहर
इस्लामियात
Nabood
Malal
शैख़ मोहम्मद हुसैन शाह
दीवान
Subah Malal Wo Sham-e-Gham
चाँदनी रात ने एहसास दिलाया है 'मलाल'आदमी कितने सराबों में घिरा होता है
ख़याल तक न रहे राएगाँ गुज़रने काअगर 'मलाल' इन आँखों को मेहरबाँ देखूँ
आख़िरी तजज़िया यही है 'मलाल'आदमी दाएरों में रहता है
क्या अजब राज़ है होता है वो ख़ामोश 'मलाल'जिस पे होने का कोई राज़ अयाँ होता है
होने की इंतिहा है वही आज तक 'मलाल'जो इब्तिदा में हो गया इस ख़ाक-दान में
एक दम हो रौशनी तो क्या नज़र आए 'मलाल'क्या समझ पाऊँ जो सब कुछ ना-गहाँ मालूम हो
किस को इब्नुस-सबील कहते 'मलाल'नए रस्तों का कौन बेटा था
यूँ तो मुझे भी शिकवा है उन से मगर 'मलाल'हालात इस तरह के हैं लोगों से भी हो क्या
न साँस ले सका गहराइयों में जब वो 'मलाल'तो उस को अपने जज़ीरे से हम-कनार किया
सोए हुए करेंगे 'मलाल' उस का तजज़ियाइस ख़्वाब-गाह में कोई बेदार हो गया
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