aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ملمع"
आनंद नारायण मुल्ला
1901 - 1997
शायर
मुल्ला वजही
died.1659
मलिका नसीम
born.1954
मुल्ला नसरुद्दीन
लेखक
मुल्ला अब्दुर्रहमान जामी
1414 - 1492
अमजद अशरफ़ मल्ला
born.1999
महिमा चौबे माही
मुल्ला वाहिदी देहलवी
1888 - 1976
मलिका आफ़ाक़ ज़मानी बेगम
died.1983
सादुल्लाह खां असर मल्कापुरी
born.1933
मिस्मा नाज़
मुल्ला ग़व्वासी
मुल्ला नुसरती
जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली
अहमद अली अजीब
लड़के सब से ज़्यादा ख़ुश हैं। किसी ने एक रोज़ा रखा, वो भी दोपहर तक। किसी ने वो भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की ख़ुशी इनका हिस्सा है। रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे, बच्चों के लिए तो ईद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज वो आ गई। अब...
उसका सीना अंदर से तप रहा था। ये गर्मी कुछ तो उस ब्रांडी के बाइस थी जिसका अद्धा दरोग़ा अपने साथ लाया था और कुछ उस “ब्यौड़ा” का नतीजा थी जिसका सोडा ख़त्म होने पर दोनों ने पानी मिला कर पिया था। वो सागवान के लम्बे और चौड़े पलंग पर...
बर्बादियाँ तो मेरा मुक़द्दर ही थीं मगरचेहरों से दोस्तों के मुलम्मा उतर गया
“यार मुलम्मा की न ठोक देना।” यानी बड़े भाई ज्ञान चंद की साहूकारी पर हमला करते हैं। और इधर नेशनल गार्ड दीवारों पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' लिख देते और सेवा सिंह का दल उसे बिगाड़ कर 'अखंड हिंदुस्तान' लिख देता। ये उस वक़्त का ज़िक्र है जब पाकिस्तान का लेन-देन एक...
حاصل ہوا ہے مرتبہ لافتی کسے کونین میں ملا شرف انما کسے...
महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिध्द
तरग़ीबी या प्रेरक शायरी उन लम्हों में भी हमारे साथ होती है जब परछाईं भी दूर भागने लगती है। ऐसी मुश्किल घड़ियाँ ज़िन्दगी में कभी भी रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती हैं। हौसलों के चराग़ बुझने लगते हैं और उम्मीदों की लौ मद्धम पड़ जाती है। तरग़ीबी शायरी इन हालात में ढारस बंधाती और हिम्मत देती है।
महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिध्द।
Intikhab-e-sabras
दास्तान
Sab Ras
फ़िक्शन
Qutub Mushtari
शायरी
Mulla Nasruddin Ke Lateefe
सय्यद सईद अहमद
हास्य-व्यंग
Dilli Ka Phera
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Sabras
अफ़साना
Aurat Zaat
मुल्ला रमूज़ी
गद्य/नस्र
कुल्लियात-ए-जामी
कुल्लियात
इक़बाल और मुल्ला
खलीफ़ा अब्दुल हकीम
आलोचना
Anwar-e-Suhaili Ki Kahaniyan
मुल्ला हुसैन वाइज़ कशिफ़ी
कहानी
Mere Zamane Ki Dilli
लेख
Akhlaq-e-Mohsini
शिक्षाप्रद
Masnawi Saif-ul-Mulook-o-Badi-ul-Jamal
मसनवी
मेरी बीवी ने उसको पानी लाने से मना कर दिया। उसने वो टूटा हुआ मग वापस अलमारी के नीचे इस अंदाज़ से रखा कि जैसे वही उसकी जगह थी। अगर उसे कहीं और रख दिया जाता तो यक़ीनन घर का सारा निज़ाम दरहम बरहम हो जाता। इसके बाद वो यूं...
धूप ढल कर घड़ौंची और वहां से कंडेली पर पहुंची। सास बड़-बड़ाती रही... “मुए नफ़क़ते बेटी को क्या जहेज़ दिया था। ए वाह क़ुर्बान जाईए... खोली कड़े और मुलम्मा की बालियां और...”...
लोग हमें मिज़्रा का हमदम-ओ-हमराज़ ही नहीं, हमज़ाद भी कहते हैं। लेकिन इस यगानगत और तक़र्रुब के बावजूद हम वसूक़ से नहीं कह सकते कि मिर्ज़ा ने आलू और अबुल कलाम आज़ाद को अव्वल अव्वल अपनी चिड़ कैसे बनाया। नीज़ दोनों को तिहाई सदी से एक ही ब्रैकट में क्यों...
ایک ایک کرکے انتظار کے دن کٹنے لگے۔ صبح ہوتے ہی ہماری نگاہ کیلنڈر پر جاتی میرا مکان بکرم کے مکان سے ملا تھا۔ اسکول جانے سے قبل اوراسکول سے آنے کے بعد ہم دونوں ساتھ بیٹھے اپنے منصوبے باندھا کرتے اور سرگو شیوں میں کہ کوئی سن نہ لے۔...
میں اس صدمے سے متاثر ہو کر اپنے ملک کی کشید کردہ شراب زیادہ مقدار میں پی کر یقیناً مر گیا ہوتا، اگر میں نے فوراً ہی اس مقدمے کا فیصلہ نہ پڑھ لیا ہوتا۔ یہ میرے ملک کی بدقسمتی تو ہوئی کہ ایک انسان محض خس کم جہاں پاک...
پٹری چمک رہی تھی، گاڑی گزر چکی تھی ٹھیک سے یاد نہیں اسے پہلے پہل کب دیکھا اور وہ اس وقت کیا پہنے ہوئے تھی، کیسی لگ رہی تھی۔ وہ ان عورتوں میں سے تھی جن سے مل کر اپنے مرد ہونے کا احساس نہیں ہوتا۔ مطلب یہ کہ وہ...
“इस लिए कि उसे और मुझे अभी तक किसी फ़िल्म में इकट्ठे करने का मौक़ा नहीं मिला।” सलीम ने ये सुनकर कहा। “तो छोड़िए... हम आप को ख़्वाह मख़्वाह तकलीफ़ देना नहीं चाहते।” ...
सर हुए इस के मुलम्मा' से न आपज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं से ख़ता पाइएगा
اجمالی طورپر جب یہ ذہن نشیں ہوجاتاہے کہ حقائق اشیا میں ہم غلطی کرسکتے ہیں اورکرتے ہیں، توحضرات صوفیہ خاص خاص چیزوں کی نسبت جن سے تصوف کوتعلق ہے، تلقین کرتے ہیں کہ ان کی وہ حقیقت نہیں، جوعام لوگ سمجھتے ہیں۔ مثلاً تمام عالم اس پرمتفق ہے کہ زندگی...
گزشتہ سطور میں اس نظم کے تخلیقی کینوس کی وسعت کا جو ذکر کیا گیا تھا یہ تین مصرعے اس کی بھرپور تائید کرتے ہیں۔ وقت کی تبدیلی کے ساتھ انسان کے معمولات حیات کی تبدیلی جو رفتہ رفتہ معاشرہ کی شناخت بن جایا کرتی ہے، اس کا بیان جون...
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