aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ممنوع"
ममनून निज़ामुद्दीन
died.1844
शायर
मशकूर ममनून क़न्नौजी
born.1980
ममनून हसन
संपादक
मोहम्मद अख़्तर ममनूका
लेखक
किस ने जींस करी ममनूअ'पहनो अच्छी लगती हो
कुछ भी न रहा जब बिकने को जिस्मों की तिजारत होने लगीख़ल्वत में भी जो ममनूअ' थी वो जल्वत में जसारत होने लगी
अगर हम साबुन और लैविन्डर का ज़िक्र कर सकते हैं तो उन मौर्यों और बदरुओं का ज़िक्र क्यों नहीं कर सकते जो हमारे बदन का मैल पीती हैं। अगर हम मंदिरों और मस्जिदों का ज़िक्र कर सकते हैं तो उन क़हबा-ख़ानों का ज़िक्र क्यों नहीं कर सकते जहाँ से लौट...
“दुनिया में दो क़िस्म के इंसान हैं। एक क़िस्म उन इंसानों की है जो अपने ज़ख़्मों से दर्द का अंदाज़ा करते हैं। दूसरी क़िस्म उनकी है जो दूसरों के ज़ख़्म देख कर दर्द का अंदाज़ा करते हैं। तुम्हारा क्या ख़याल है, कौन सी क़िस्म के इंसान ज़ख़्म के दर्द और...
बाहर से आते हैं तो ख़ुश ख़ुश, कोई न कोई शगूफ़ा लिए हुए, मेरी ख़ुशामद भी ख़ूब हो रही है। मेरे मैके वालों की तारीफ़ भी हो रही है। मैं हज़रत की चाल समझ रही थी, ये सारी दिलजुई महज़ इसलिए थीं कि आपके बिरादर मुकर्रम के मुताल्लिक़ कुछ न...
उर्पदू में र्तिबंधित पुस्तकों का चयन
आँसू पानी के सहज़ चंद क़तरे नहीं होते जिन्हें कहीं भी टपक पड़ने का शौक़ होता है बल्कि जज़्बात की शिद्दत का आईना होते हैं जिन्हें ग़म और ख़ुशी दोनों मौसमों में संवरने की आदत है। किस तरह इश्क आंसुओं को ज़ब्त करना सिखाता है और कब बेबसी सारे पुश्ते तोड़ कर उमड आती है आईए जानने की कोशिश करते हैं आँसू शायरी के हवाले से.
एक तख़्लीक़कार ज़िन्दगी को जितने ज़ावियों और जितनी सूरतों में देखता है वो एक आम शख़्स के दायरे से बाहर होता है । ज़िन्दगी के हुस्न और उस की बद-सूरती का जो एक गहिरा तज्ज़िया शेर-ओ अदब में मिलता है उस का अन्दाज़ा हमारे इस छोटे से इन्तिख़ाब से लगाया जा सकता है । ज़िन्दगी इतनी सादा नहीं जितनी बज़ाहिर नज़र आती है उस में बहुत पेच हैं और उस के रंग बहुत मुतनव्वे हैं । वो बहुत हमदरद भी है और अपनी बाज़ सूरतों में बहुत सफ़्फ़ाक भी । ज़िन्दग की इस कहानी को आप रेख़्ता पर पढ़िए।
ममनूअ'ممنوع
forbideen, prohibited
Shahr-e-Mamnu
वाजिदा तबस्सुम
महिलाओं की रचनाएँ
Shajar-e-Mamnua
सिद्दीक़ मुजीबी
ग़ज़ल
Kucha-e-Mamnu
सुरैय्या जबीं क़ादरी
नॉवेल / उपन्यास
Peris 205 Kilometre
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Mamnua Literature
इब्राहिम जलीस
उपन्यास
Mashroo Aur Mamnu Wasile Ki Haqeeqat
मोहम्मद नसीब-उर-रिफाई
Majlis-e-Mamnoon
आफ़ाक़ अहमद
Iqbal Aur Mamnoon
अख़लाक़ असर
Ek Mamnua Mohabbat Ki Kahani
रहमान अब्बास
Mar 1983
Kulliyat-e-Mamnoon
कुल्लियात
Ghair Mamnua Nazmen
अनीस नागी
नज़्म
Dil-e-Nadan
अनवर शैख़
काव्य संग्रह
Mamnua Simt Mein
ओमप्रकाश राठौर
शायरी
چنانچہ عرب شاعر امرأالقیس کے بارے میں مشہور ہے کہ جب وہ اپنے باپ کے قتل کا بدلہ لینے روانہ ہوا تو راستے میں ذوالخلاصہ کے معبد پر استخارے کے لئے ٹھہرا۔ اس نے تین بار رسم کے مطابق تیر توڑے مگر ہر بار یہی استخارہ نکلا کہ انتقام کا...
इस पर बशीर बद्र कँवर साहब से बेजा मुदाख़िलत की माफ़ी चाहते हुए बोले कि “में एक शरई मसला याद दिलाने के लिए हाज़िर हुआ हूँ। वो ये कि इस्लाम में ऐबदार की क़ुर्बानी मम्नू’अ है।”...
“रावियान सादिक़ का क़ौल है कि असल उस की बंजारन है। वो बंजारन से ठकुराइन बनी, ठकुराइन से पठाननी, पठाननी से कबड़न, कबड़न से दरज़न और अब दरज़न से सैदानी बनने के इरादे रखती है!” एक साहब ने पूछा, “और इस के बाद?”...
अगर वेश्या का ज़िक्र फ़ोह्श है तो उसका वजूद भी फ़ोह्श है। अगर उसका ज़िक्र मम्नूअ है तो उसका पेशा भी मम्नूअ होना चाहिए। उसका ज़िक्र ख़ुद ब-ख़ुद मिट जाएगा।...
اٹھ کر کھڑے ہوگئے۔ پھر رکوع میں چلے گئے اور تین مرتبہ سبحان اللہ! سبحان اللہ! سبحان اللہ! تجوید سے ادا کرنے کے بعد فرمایا، ’’آپ اچھا ڈائلاگ بول رہے ہیں۔ ایسا ڈائلاگ میں نے ۱۹۲۵ میں پشاور میں سنا تھا۔ ایک تھیٹریکل کمپنی آئی تھی۔ ہیروئن کا پارٹ ایک...
हम अगर भंगियों के मुताल्लिक़ बात करें तो यक़ीनन कूड़े कर्कट और गंदगी का ज़िक्र आएगा। अगर हम वैश्याओं के मुताल्लिक़ बात करें तो यक़ीनन उन के पेशे का भी ज़िक्र आएगा। वैश्या के कोठे पर हम नमाज़ या दुरूद पढ़ने नहीं जाते हैं वहां जिस ग़रज़ से हम जाते...
ہمیں یہ ماننے میں پس وپیش نہ کرنا چاہئے کہ ناول کی طرح افسانہ نگاری بھی ہم نے مغرب سے حاصل کیا ہے۔ کم از کم اس کی آج کی شکل تو مغرب کی دین ہے۔ مختلف اسباب کے تحت زندگی کی دوسری راہوں کی طرح ادب میں بھی ہماری...
वो बड़ी सयाक़ दान और अंदाज़ा गीर औरत थी। उसने दो महीने के अ’र्से ही में हिसाब लगा लिया था कि एक बरस के अंदर अंदर उसके ख़्वाबों के तकमील की इब्तिदा हो जाएगी, क्योंकर होगी और किस फ़िज़ा में होगी, ये सोचना प्रफुला राय का काम था और लतिका...
जोश साहब के हाँ डाक्टर साहब मुझे ले गए। ख़ासी पुरतकल्लुफ़ दावत थी। दस्तरख़्वान पर हंसी मज़ाक़ की बातें होती रहीं। डाक्टर साहब बड़े ज़िंदा दिल आदमी थे। रोतों को हंसाते थे। जोश साहब शायर भी थे और बादा-ख़्वार भी, इसलिए डाक्टर साहब से उनकी ख़ूब निभती थी। डाक्टर साहब...
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