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नज़्म
फ़र्ज़ करो
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे हातों की शम्ओं की हसरत में हम
नीम-तारीक राहों में मारे गए