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नज़्म
शिकवा
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
नज़्म
ए'तिराफ़
अपनी आँखों में लिए दावत-ए-ख़्वाब आती थी
संग को गौहर-ए-नायाब-ओ-गिराँ जाना था
असरार-उल-हक़ मजाज़
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नज़्म
26 जनवरी
मज़हब का रोग आज भी क्यूँ ला-'इलाज है
वो नुस्ख़ा-हा-ए-नादिर-ओ-नायाब क्या हुए
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
रहता हूँ किस ख़याल में 'नायाब' इन दिनों
क्या क्या मैं सोचता हूँ मुझे कुछ नहीं पता