aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پرندہ"
प्रणय कृष्ण
संपादक
जासूसी फन्दा, दिल्ली
पर्काशक
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगापरिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए
निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदाअब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है
अगर सोने के पिंजड़े में भी रहता है तो क़ैदी हैपरिंदा तो वही होता है जो आज़ाद रहता है
इक परिंदा अभी उड़ान में हैतीर हर शख़्स की कमान में है
मैं भी तो इस बाग़ का एक परिंदा हूँमेरी ही आवाज़ में मुझ को गाने दे
शायरी अपने जौहर को पेश करने के लिए हमारे आस-पास के तत्वों की सम्भावनाओं को उपयोग में लाती है । इसलिए जब उर्दू शायरी पंछी को अपना पात्र बनाती है तो ये शायरी में सिर्फ़ परिंदा नहीं रहता बल्कि आज़ादी और बुलंदी आदि का प्रतीक बन जाता है । ये और भी कई स्तर पर ज़िंदगी में प्रोत्साहन का प्रतीक बन कर सामने आता है । उदाहरण के तौर पर परिंदों का विदा हो जाना ज़िंदगी की मासूमियत का समाप्त हो जाना है । आधुनिक शहरी जीवन की एक पीड़ा ये भी है कि यहाँ से परिंदों की चहचहाट ग़ायब हो गई है । इसी तरह के तजरबे से सजी चुनिंदा शायरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
परिंदाپرندہ
bird, winged creature
Parinda Pakadne Wali Gaadi
ग़यास अहमद गद्दी
अफ़साना
दुख लाल परिंदा है
अली मोहम्मद फ़र्शी
माहिया
Tilismi Parinda
मक़बूल आमिर
कहानी
Aap Se Kya Parda
इब्न-ए-इंशा
मज़ामीन / लेख
Parda-e-Ghaflat
सय्यद आबिद हुसैन
नाटक / ड्रामा
Halal-o-Haram Parinde Aur Unke Tibbi Fawaid
सलीम अहमद
औषधि
Pari Naaz Aur Parinde
अनीस अशफ़ाक़
नॉवेल / उपन्यास
Barf Aashna Parinde
तरन्नुम रियाज़
उपन्यास
Pas-e-Parda
मिर्ज़ा अदीब
Parinde
मुस्तनसिर हुसैन तारड़
Sunahri Parinda
रहमानी जुवेरिया तबस्सुम
बाल-साहित्य
Parda
सय्यद अबुल आला मोदूदी
इस्लामियात
Parda Khulta Hai
हबीब तनवीर
आत्मकथा
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला हैपरिंदा शाम के पुल पर बहुत ख़ामोश बैठा है
फँसता नहीं परिंदा है भी इसी फ़ज़ा मेंतंग आ गया हूँ दिल को यूँ दाम करते करते
खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत हैपरिंदा क्यूँ किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए
बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्याभला अंधों से पर्दा क्यों करें हम
सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छासोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा
इक 'इश्क़ नाम का जो परिंदा ख़ला में थाउतरा जो शहर में तो दुकानों में बट गया
परिंदा जानिब-ए-दाना हमेशा उड़ के आता हैपरिंदे की तरफ़ उड़ कर कभी दाना नहीं आता
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