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नज़्म
रक़ीब से!
हम पे मुश्तरका हैं एहसान ग़म-ए-उल्फ़त के
इतने एहसान कि गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
लेख
تو نہ کڑھنا تجھے میری غم الفت کی قسم اس کا کیا غم یونہی مرجاتے ہیں مرنے والے...
अब्दुल माजिद दरियाबादी
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ग़ज़ल
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैं
कुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का