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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
वो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
जौन एलिया
तंज़-ओ-मज़ाह
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
नई तहज़ीब
ये मौजूदा तरीक़े राही-ए-मुल्क-ए-अदम होंगे
नई तहज़ीब होगी और नए सामाँ बहम होंगे
अकबर इलाहाबादी
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रेख़्ता शब्दकोश
tum to jab maa.n ke peT se bhii nahii.n nikle hoge
तुम तो जब माँ के पेट से भी नहीं निकले होगेتُم تو جَب ماں کے پیٹ سے بھی نَہِیں نِکْلے ہوگے
इस मौक़ा पर बोलते हैं जब ये जतलाना मंज़ूर हो कि ये बहुत पुरानी बात है, तुम्हारे पैदा होने से पहले की बात है
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तंज़-ओ-मज़ाह
पतरस बुख़ारी
ग़ज़ल
किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
वो ज़ालिम आसमाँ जाने मिरी दुनिया कहाँ होगी
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे
चमन में आएगी फ़स्ल-ए-बहाराँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
कहानी
“कैंब्रिज। इंगलैंड। डैड वहाँ पीटर हाऊस में रियाज़ी पढ़ाते थे।” “बीमार हैं?”...