aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अचार"
अंसार कंबरी
शायर
आज़म कुरेवी
1898 - 1955
हुरमतुल इकराम
1928 - 1983
नासिरुद्दीन अंसार
born.1974
अंसार नासिरी
लेखक
मुशताक़ दरभंगवी
born.1958
अनार कली किताब घर, लाहौर
पर्काशक
महशर फ़ैज़ाबादी
अचार्य केशवदास कृत
डॉ अंसार ज़ाहिद
संपादक
मोहम्मद अंसारुल्लाह अंसार
अंसार हुसैन आज़मी
सय्यद अंसार हुसैन
कारख़ाना एम यू अार ब्रादर्स
फ़ारूक़ अंसार
इस बस्ती के रहने वालों की सरपरस्ती और उनके मुरब्बियाना सुलूक की वज्ह से इसी तरह दूसरे तीसरे रोज़ कोई न कोई टट-पुंजिया दुकानदार कोई बज़्ज़ाज़, कोई पंसारी, कोई नेचाबंद, कोई नान-बाई मंदे की वज्ह से या शह्र के बढ़ते हुए किराए से घबरा कर उस बस्ती में आ पनाह...
किसी की तुर्श-रुई का सबब यही तो नहींअचार लेमूँ अनार आम टाटरी इमली
तो हंस कर बोले कि वतन मालूफ़ में रोटी के हदूद अर्बा यही होते हैं। आख़िर कई फ़ाक़ों के बाद एक दिन हमने ब नज़र हौसला अफ़्ज़ाई कहा, “आज तुमने चावलों का अचार बहुत अच्छा बनाया है।”...
मुंशी, ये मैंने कब कहा था कि लेमन और सोडे में कुछ फ़र्क़ ही नहीं... बहुत फ़र्क़ है... ज़मीन-ओ-आसमान का फ़र्क़ है। एक में मिठास है। ख़ुशबू है। खटास है। यानी तीन चीज़ें सोडे से ज़्यादा हैं। सोडे में तो सिर्फ गैस ही गैस है और वो भी इतनी तेज़...
उधर बूढ़ा महराज बीमार हो कर चला गया था और उसकी जगह उसका सोलह-सत्रह साल का लड़का आगया था, कुछ अ’जीब मसख़रा सा, बिल्कुल उजड्ड और दहक़ानी, कोई बात ही न समझता उसके फुल्के इक़लीदस की शक्लों से भी ज़्यादा मुख्तलिफुल अश्काल हो जाते बीच में मोटे, किनारे पतले, दाल...
अचारاچار
pickles
प्रसिद्ध खटास, खेटाई ।
अनार कली
सय्यद इम्तियाज़ अली ताज
रोमांनवी
अनार का मज़ा
जय श्री पांडे
बाल-साहित्य
Chandra Mohini
नॉवेल / उपन्यास
Deewan-e-Ayar
ख़्वाजा अब्दुल ग़फ़्फ़ार अयार
दीवान
Rasheed Hasan Khan Muhaqqiq Aur Mudawvin
टी-अार-रैना
आलोचना
रबीन्द्र नाथ टैगोर
कहानी
Maktubat-e-Mashahir
पत्र
Pandit Mela Ram Wafa Hayat-o-Khidmat
Adabi Mutaleaat
शोध एवं समीक्षा
Moghiya Lok Kahaniyan
पी. अार. शुकला
लोक कथाएँ
Adabi Aur Tahqiqi Mazameen
Sair-o-Siyaahat
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Rasheed Hasan Khan Ke Khutoot
Bachchon Ki Tarbiyat Kaise
अंसार जुबैर मोहम्मदी
पालना पोसना
इत्तिफ़ाक़ीया तौर पर कहीं मुलाक़ात हो जाने पर अगर आपकी आँखों से ख़ुशी दमकने लगी और होंटों पर मुस्कुराहट नाचने लगी तो इसे रस्मी अख़लाक़ पर मह्मूल किया जाएगा! कुछ वज़ाहत के ख़याल से आपने क़हक़हा लगाया और आप पर हतक-ए-इज़्ज़त का दावा! उनकी पैरवी में ब्लैक काफ़ी, कोल्ड काफ़ी,...
उसको शहर के लोगों के तकल्लुफ़ात का इल्म नहीं था। वो ये क़तअन नहीं जानती थी कि जो मर्द उसके पास आते हैं, सुब्ह-सवेरे अपने दाँत ब्रश के साथ साफ़ करने के आदी हैं और आँखें खोल कर सब से पहले बिस्तर में चाय की प्याली पीते हैं, फिर रफ़ा-ए-हाजत...
वो जो आमले का अचार थातुम्हें याद हो कि न याद हो
शराब गले के लिए सख़्त ग़ैर मुफ़ीद है। लेकिन सहगल मरहूम सारी उम्र बलानोशी करते रहे। खट्टी और तेल की चीज़ें गले के लिए तबाहकुन हैं। ये कौन नहीं जानता? मगर नूर जहाँ पाव पाव भर तेल का अचार खा जाती है और लुत्फ़ की बात ये है कि जब...
“प्यारी अम्मी क्या हलीमा गांव जा रही है?” छम्मन ने आख़िर दू-ब-दू पूछ ही लिया। हलीमा कई रोज़ से टसर-टसर रो रही थी। “हाँ चंदा, नायाब बो बो भी साथ जाएँगी। अम्मी हुज़ूर से मैंने कहलवा दिया है कि तुम्हारे लिए नीबू का अचार ज़रूर इरसाल फ़र्माएं।”...
आराम कुर्सी रेल के डिब्बे से लगादी गई और भाई जान ने क़दम उठाया, “इलाही ख़ैर... या ग़ुलाम दस्तगीर... बारह इमामों का सदक़ा। बिसमिल्लाह बिसमिल्लाह... बेटी जान सँभल के... क़दम थाम के... पांयचा उठाके... सहज सहज।” बी मुग़्लानी नक़ीब की तरह ललकारीं। कुछ मैंने घसीटा कुछ भाई साहब ने ठेला।...
उसकी माँ चचा के घर गई हुई थी। वो कह गई थी कि शाम में बारिश होगी, बेहतर है, वो कपड़े धो कर सुखा ले, मगर मसर्रत यूँही लेटी रही। जिस्म में तैरती अलकस का एहसास इत्मीनान-बख़्श था, और मिर्चों के अचार का ज़ायक़ा अब तक ज़बान पर था। हल्की-हल्की...
ये डिनर मसर्रत और सईद भाई ने अपनी शादी की सालगिरह मनाने के लिए दे रखा था। न जाने क्यों ताहिरा ड्राइंग रुम से आगे दादी अम्मां के बेडरूम की तरफ़ चली गई। उसने जमा गोट में रह कर कई बातें सीखी थीं। अचार गोश्त पकाना, दूपट्टों को टाई ऐंड...
1. “मेरे अज़ीज़ हम वतनो, हम इतने साल से आपको ललकार ललकार कर अपने कीनावर हमसाए के अज़ाइम से आगाह करते रहे हैं और फ़लाह का रास्ता दिखाते रहे हैं लेकिन आप लहू-ओ-लाब में पड़े रहे, कभी इधर तवज्जो न की। अब तो आपकी आँखें खुल गई होंगी। अगर न...
इस किताब में बहुत सी बातें और तरकीबें ऐसी हैं कि हर घर में मालूम रहनी चाहिऐं, मसलन ये कि सालन में नमक ज़्यादा हो जाये तो क्या किया जाये। एक तरकीब तो इस किताब के बमूजब ये है कि इस सालन को फेंक कर दुबारा नए सिरे से सालन...
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