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ग़ज़ल
फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त
अब हम भी आ मिले तो हुए मिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
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मर्सिया
ताज़ीम वो करते थे बतूल अज़्रा की
ए जान पिदर है मुझे वाजिब तिरी तौक़ीर
मीर मुज़फ़्फ़र हुसैन ज़मीर
शेर
आने वाले कल की ख़ातिर हर हर पल क़ुर्बान किया
हाल को दफ़ना देते हैं हम जीने की तय्यारी में
अज़रा नक़वी
शेर
फ़रहाद ओ क़ैस ओ वामिक़ ओ अज़रा थे चार दोस्त
अब हम भी आ मिले तो हुए मिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
लेख
जादा-ए-अजज़ा-ए-दो-आलम दश्त का शीराज़ा था है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब...
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
कहानी
सआदत हसन मंटो
ग़ज़ल
कैसी अज़रा कैसी लैला कैसा वामिक़ कैसा मजनूँ
अब मशहूर जहाँ में क्या क्या मैं ही मैं हूँ तू ही तू है