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नज़्म
ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में
वो जिस के अंदाज़ ख़ुसरवाना थे
और अदाएँ ग़रीब सी थीं
अहमद फ़राज़
शेर
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
हुस्न-ए-नज़र-फ़रेब में किस को कलाम था मगर
तेरी अदाएँ आज तो दिल में समा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
फड़क उठ्ठा कोई तेरी अदाए मा-'अरफ़ना पर
तिरा रुत्बा रहा बढ़-चढ़ के सब नाज़-आफ़रीनों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस से मोहब्बत है
अदाएँ ले के आई है वो फ़ितरत के ख़ज़ानों से
जगा सकती है महफ़िल को नज़र के ताज़्यानों से
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
थीं पेश-ए-नज़र कल तो फ़रिश्तों की अदाएँ
आईना-ए-अय्याम में आज अपनी अदा देख!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक रह-गुज़र पर
अदा-ए-लग़्ज़िश-ए-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां