aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "इतरा"
अलीना इतरत
शायर
रिज़्वाना बानो इक़रा
born.1988
इक़रा आफ़िया
born.1994
इतरत हुैसैन अाशक़ी
लेखक
मिसेज़ इतर चंद कपूर एण्ड संस पब्लिशर्स, लाहौर
पर्काशक
इक़रा अम्बर
born.1983
इक़रा
ए. एम. इतरत हुसैन नय्यर
इक़रा नियाज़ अहमद
संपादक
इतरत हुसैन
इतरत हल्लोरी
इंदरा शबनम
इरा जोशी
इक़रा सुबहान
इक़रा जोशी
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
गुल खिलाए कोई मैदाँ में तो इतरा जाएँपाएँ सामान-ए-इक़ामत तो क़यामत ढाएँ
इतरा रहे हो आज पहन कर नई क़बादामन था तार तार अभी कल की बात है
अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरियाएक क़तरा ही बहुत है तिरी रुस्वाई को
बहुत इतरा रहे हो दिल की बाज़ी जीतने परज़ियाँ बा'द अज़ ज़ियाँ बा'द अज़ ज़ियाँ कैसा लगेगा
शायरी में महबूब माँ भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस प्यार को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। इन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शेयर कीजिए।
शायरी में महबूब माँ भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जानसारी को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। उन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शएर कीजिए।
ऐसे अशआर भी कसीर तादाद में हैं जिनका एक ही मिस्रा इतना मशहूर हुआ कि ज़्यादा-तर लोग दूसरे मिसरे से वाक़िफ़ ही नहीं होते। “पहुँची वहीं पे ख़ाक-ए-जहाँ का ख़मीर था” ये मिस्रा सबको याद होगा लेकिन मुकम्मल शेर कम लोग जानते हैं। हमने ऐसे मिस्रों को मुकम्मल शेर की सूरत में जमा किया है। हमें उम्मीद है हमारा ये इंतिख़ाब आपको पसंद आएगा।
इतराاترا
acting coyly, putting on airs
इतर-ए-काफूर
नैयर मसूद
अफ़साना
Saman-e-Karbala
मर्सिया
इक़रा उर्दू
मतीन तारिक़ बाग़पती
बाल-साहित्य
Shumara Number-018
अहसन सलीम
इजरा, कराची
मिर्ज़ा अदीब और अफ़सो साज़ी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Aayiye ek Saath Aage Badhen
इंद्रा गांधी
इंद्रा
राय बहादुर बाबू बंकम चन्द्र चेटरजी
नॉवेल / उपन्यास
Nar-e-Visal
Qanoon-e-Itrat
तिब्ब-ए-यूनानी
Aaiye Bharat Ko Azeem Banayein
Ibadat
Nare Visal
काव्य संग्रह
इत्र-ए-गुल
ख़िज़्र बर्नी
क़िस्सा ज़रा सी काम को इतना तूमार
मोहम्मद एहसानुल्लाह
दास्तान
करोगे याद तुम गुज़रे ज़मानों की सभी बातेंकभी इतरा के हँस दोगे कभी आँसू बहाओगे
इतरा के ये रफ़्तार-ए-जवानी नहीं अच्छीचाल ऐसी चला करते हैं जैसी कि हवा हो
दिल कुछ सुबूत-ए-हिफ़्ज़-ए-शरीअत न दे सकासाक़ी के लुत्फ़-ए-ख़ास पे इतरा के पी गया
मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनीन जाने हुस्न क्यूँ इतरा रहा है
उस से कहना कि न अब और वो इतरा के चलेदोस्तो तुम को अगर यार-ए-तरह-दार मिले
हाँ देख ज़रा क्या तिरे क़दमों के तले हैठोकर भी वो खाए है जो इतरा के चले है
इस ज़ख़्म-ए-दिल पे आज भी सुर्ख़ी को देख करइतरा रहे हैं हम हमें इतराना चाहिए
"झेप। हटो हम कुट्टी कर दें।" शबराती ने फिर डकार लेकर चने के साग का मज़ा लेना शुरू किया। वो इतरा कर गंडासा सँभाल कर बैठ गई। गोया उसने सुना ही नहीं।...
अब घर अच्छा-ख़ासा पोल्ट्रीफार्म (मुर्ग़ी ख़ाना) मालूम होता था। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि पोल्ट्रीफार्म में आम तौर से इतने आदमियों के रहने की इजाज़त नहीं होती। जो हज़रात अलाम दुनियावी से आजिज़-ओ-परेशान रहते हैं, उनको मेरा मुख़लिसाना मश्वरा है कि मुर्ग़ियां पाल लें। फिर उसके बाद पर्द-ए-ग़ैब से कुछ...
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