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ग़ज़ल
इतनी क़ीमत-ए-शाम-ए-सफ़र दूँ ये नहीं होगा
अपने चराग़ को ख़ुद गुल कर दूँ ये नहीं होगा
महशर बदायुनी
नज़्म
कहीं से तुम मुझे आवाज़ देती हो
ग़ुबार-ए-शाम के बे-अक्स मंज़र में हवा की साएँ साएँ
पंछियों को हाँकती है
ताबिश कमाल
ग़ज़ल
ज़वाल-ए-शाम-ए-हिज्राँ का इशारा देखता हूँ मैं
चराग़ों के बदन को पारा-पारा देखता हूँ मैं
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सवाद-ए-शाम-ए-ग़म में यूँ तो देर तक जला चराग़
न जाने क्यूँ थका थका उदास उदास था चराग़