aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जहल"
अदा जाफ़री
1924 - 2015
शायर
नूर जहाँ सरवत
1949 - 2010
रशीद जहाँ
1905 - 1952
लेखक
नवाब सुल्तान जहाँ बेगम
1838 - 1901
मुनव्वर जहाँ मुनव्वर
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
1903 - 1976
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
1865 - 1937
नूर जहाँ बेगम नूर
अनवर निज़ामी जबल पुरी
इक़बाल जहाँ क़दीर
मसरूर जहाँ
1938 - 2019
जहाँ आरा तबस्सुम
born.1970
क़मर जहाँ नसीर
नूर जहाँ नाज़
इशरत जहाँ तरब
ज़ुल्म की बात को जहल की रात कोमैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादाउसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
निस्बत-ए-'इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़उस ने तो कार-ए-जहल भी बे-उलमा नहीं किया
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तोसब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल हैदिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
जहलجہل
ignorance
Shahwar
उपन्यास
Deewan-e-Chirkin
शैख़ बाक़र अली चिरकीन
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
Meer Aman Dehlvi : Hayat-o-Taleefaat
नफ़ीस जहाँ बेगम
जीवनी
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
क़ुर्रतुलऐन हैदर की अफ़्साना निगारी
डॉ. मुसर्रत जहाँ
आलोचना
ए वॉइस फ्रॉम दी ईस्ट
ज़ुल-फ़िक़ार अली ख़ान
Urdu Muhavarat Ka Tahzeebi Mutala
इशरत जहाँ हाशमी
मुहावरे / कहावत
जदीद उर्दू तन्क़ीद पर मग़रिबी तन्क़ीद के असरात
ख़ुर्शीद जहाँ
Zindagi Ki Yadein
जहाँ आरा हबीबुल्लाह
कहानियाँ
Mera Pakistan
ज़ुल फिक़ार अली भुट्टू
इक़बाल: एक मुताला
ग़ुलाम हुसैन ज़ुल-फ़िक़ार
शहर-ए-आशोब एक ताज्ज़िया
अमीर आरिफ़ी
Urdu Ghazal Par Taraqqi Pasand Adabi Tahreek Ke Asrat
नुसरत जहाँ
शायरी तन्क़ीद
Altaf Husain Hali
Wo, Aur Doosre Afsane, Drame
ड्रामा/ नाटक
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाबआज तुम याद बे-हिसाब आए
शो'बदा-गर भी पहनते हैं ख़तीबों का लिबासबोलता जहल है बद-नाम ख़िरद होती है
जहल का निचोड़ हैंउन की फ़िक्र सो गई
जहल को आगही बनाते हुएमिल गया रौशनी बनाते हुए
जहल-ए-वाइ'ज़ का इस को रास आएसाहिबो मेरी आगही है शराब
दाऊ जी बड़े प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते जाते थे और कह रहे थे, "बस अब चुप कर शाबाश मेरा अच्छा बेटा। इस वक़्त ये तर्जुमा कर दे, फिर नहीं जगाऊंगा।" आँसुओं का तार टूटता जा रहा था। मैंने जल कर कहा, "आज हरामज़ादे रानो को पकड़ कर...
दस्त-कारी के उफ़ुक़ पर अब्र बन कर छाइएजहल के ठंडे लहू को इल्म से गर्माइए
अरब जिस पे क़रनों से था जहल छायापलट दी बस इक आन में उस की काया
खुल कर आख़िर जहल का एलान होना चाहिएहक़-परस्तों के लिए ज़िंदान होना चाहिए
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