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तंज़-ओ-मज़ाह
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
नक़्श-ए-तौहीद है हर नक़्श-ए-जबीन-ए-सज्दा
कहीं का'बे का तो पत्थर दर-ए-जानाँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
ब-सोज़द ईं ज़मीन-ए-ए'तिबार-ओ-आस्मानां रा
ब-सोज़द जान ओ दिल राहम बयासायद दिल ओ जाँ रा
जौन एलिया
ग़ज़ल
बे-ख़ुदी-ए-ज़ौक़-ए-सज्दा ने ये आलम कर दिया
सर तो सर अब तो निगाहें भी उठा सकता नहीं
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
अल्लह अल्लह शौक़-ए-सज्दा-रेज़ी-ए-दैर-ओ-हरम
ये जबीं झुकते ही तेरे आस्ताँ तक आ गई