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नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मिरा सोना भी क्या है जागना क्या इन्तिज़ार-ए-शब
पड़ा रहता है ये बिस्तर में ख़ुद को भूल जाता हूँ