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नज़्म
याद
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
बर्क़-रफ़्तार वो यूँ जान-ए-जहाँ मिलते हैं
हम जहाँ होते हैं वो हम को वहाँ मिलते हैं
अज़ीज़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
गरचे दिल में ही सदा जान-ए-जहाँ रहते हो
पर ब-ज़ाहिर नहीं मालूम कहाँ रहते हो