aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तबर्रुक"
सय्यद तबारक अली नक़्श बन्दी
लेखक
सैयद तबारक हुसैन
संपादक
सय्यद तबारक हुसैन जाफ़री
राजा तुरमुक लाल जागीरदार
ये ज़ाइरान-ए-अली-गढ़ का ख़ास तोहफ़ा हैमिरी ग़ज़ल का तबर्रुक दिलों की बरकत है
इसे तबर्रुक-ए-हयात कह के पलकों पर रखूँअगर मुझे यक़ीन हो ये रास्ते की गर्द है
मुझे नफ़ासत हसन की इस हरकत पर बहुत हंसी आई और मेरा जी चाहने लगा कि अगर मैं उसका तज़्किरा लिख कर मरजाऊं तो मुझे भी ज़िंदगी में कोई हसरत न रह जायेगी। मौलाना, जो नफ़ासत हसन की ‘बेतूकियों’ को बड़े ग़ौर से सुन रहे थे, कुछ न बोले। न...
हमारे मुल्क में इस वक़्त कोई भी इदारा ऐसा नहीं जिसे सही माअ’नों में आर्ट स्कूल कह सकें। लाहौर यूनीवर्सिटी के निसाब में आर्ट बहैसियत एक मज़मून के शामिल था लेकिन ये एक मख़लूत सा शुग़्ल था जिसमें थोड़ी सी मौसीक़ी, थोड़ी सी मुसव्विरी और कुछ सनअ’त और दस्तकारी सब...
ये हाल है कि किसी पर मुक़द्दमा चल जाये वो दौड़ा आजाएगा इस ख़ाकसार के पास। किसी को कोई सिफ़ारिश पहुँचवाना होगी मुँह उठाए चले आएंगे ग़रीबख़ाने पर। किसी से कोई जुर्म सरज़द होगा, पनाह ली जाएगी इस ख़ाकसार की आड़ में। बीवी ने इस ख़ाकसार शौहर को तबर्रुक बनाकर...
तबर्रुकتبرک
benediction, blessing
वह चीज़ जिसमें बरकत होने का विश्वास हो, वह चीज़ जो किसी महात्मा या दरवेश से मिले, वह प्रसाद जो किसी बुजुर्ग आदि की फ़तहा का हो, बुजुर्गों से सम्बन्ध रखनेवाली चीज़, बहुत थोड़ी-सी वस्तु (व्यंग), प्रसाद।।
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शोध
Falsafa-e-Shahadat Hazrat Imam Husain
इस्लामियात
फ़ोयूज़ात-ए-रुमी
ग़ुला मोहम्मद
तफ़र्रुक़ी मसावातें
मोहम्मद नज़ीरुद्दीन
अन्य
तसर्रुफ़
अज़ीज़ वारसी
Khutba-e-Isteqbaliya
तबर्रुकात-ए-इक़बाल
मोहम्मद बशीरूल हक़
संकलन
तलबा की आठवीं क़िस्म “अदीब” कहलाती है और शायरी या अफ़सानानिगारी के मर्ज़ या तन्क़ीद के ख़ब्त में मुब्तला रहती है। ये आपस में कुछ इस तरह मिलते ही लड़ना शुरू कर देते हैं कि बस एक दूसरे को खा ही जाएंगे। मगर चूँकि उनका ग़ुस्सा सोडे का उबाल होता...
लोग हमें मिज़्रा का हमदम-ओ-हमराज़ ही नहीं, हमज़ाद भी कहते हैं। लेकिन इस यगानगत और तक़र्रुब के बावजूद हम वसूक़ से नहीं कह सकते कि मिर्ज़ा ने आलू और अबुल कलाम आज़ाद को अव्वल अव्वल अपनी चिड़ कैसे बनाया। नीज़ दोनों को तिहाई सदी से एक ही ब्रैकट में क्यों...
बुज़ुर्गों को तबर्रुक की तरह रक्खो मकानों मेंबलाएँ रद किए जाने से घर आबाद होते हैं
हर तार का दामन के मिरे कर के तबर्रुकसर-बस्ता हर इक ख़ार-ए-बयाबान है मौजूद
रास्ते शाम को घर ले के नहीं लौटेंगेहम तबर्रुक की तरह राहों में बट जाएँगे
हो गया दिल मिरा तबर्रुक जबविर्द ये क़ितआ-ए-पयाम किया
हमारी ख़ाक तबर्रुक समझ के ले जाओहमारी जान मोहब्बत की लौ में जलती थी
‘अम्माँ जान ने बड़े प्यार से कुसुम को मीलाद का तबर्रुक दिया है।’ कुसुम दोनों हाथों में तबर्रुक लिये आँखें मूँदे खड़ी है। हमीद भी उसके बराबर खड़ा है। “खाओ कुसुम, प्रसाद खाओ, कन्हैया जी के जन्म का प्रसाद है।”...
क्यों न रक्खूँ मैं तबर्रुक की तरहग़म मिला है इश्क़ की दरगाह से
“तुम मेरा मतलब नहीं समझे। मैं पूछता हूँ कि क्या पहले ये बातें नहीं होती थीं। तुमने तो बादशाही की सत्रहवीं बय्या देखी है। आख़िर हम भी तो सुनें उस वक़्त उस मेले का क्या रंग था।” “पच्चास पचपन बरस की बातें हैं। पूरी पूरी तो कहाँ याद। दूसरे अपने...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books