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ग़ज़ल
दिल चढ़ा मुश्किल से ताक़-ए-अबरू-ए-ख़मदार पर
सौ जगह रस्ते में जब ज़ुल्फ़-ए-रसा पकड़ी गई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
तंज़-ओ-मज़ाह
याद थीं हमको भी रंगारंग बज़्म-आराइयाँ लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार ताक़-ए-निस्याँ हो गईं...
आल-ए-अहमद सुरूर
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ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
चला आ रहा हूँ समुंदरों के विसाल से
किसी दस्त-ए-ग़ैब से टूट कर
रह-ए-तार-ए-जाँ में बिखर गए!
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
बुझा सकेगी न मुझ को हवा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
मैं ताक़-ए-मा-हसल-ए-ख़ैर-ओ-शर में रौशन हूँ
मोहम्मद अहमद रम्ज़
नज़्म
इम्तिहान
पहले थीं वो शोख़ियाँ जो आफ़त-ए-जाँ हो गईं
''लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं''