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ग़ज़ल
तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूँ न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए
इस सई-ए-करम को क्या कहिए बहला भी गए तड़पा भी गए
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
हिकायत-ए-दिल-ए-महज़ूँ न क़िस्सा-ए-मजनूँ
किसी की बात सुनूँ मैं न अपनी बात कहूँ
मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी
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